छुरा@ गरियाबंद जिला मुख्यालय से महज 36 किमी की दूरी पर स्थित विश्व के 13वें ज्योतिर्लिंग महाऔघड़ेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं छत्तीसगढ़ के एक मात्र ज्योतिर्लिंग धाम अघोर मठ बिहावझोला मड़ेली छुरा जिला गरियाबंद छत्तीसगढ़ महाकौशल क्षेत्र में छुरा से घटारानी होते हुए राजिम की ओर जाने वाले मार्ग के किनारे महाऔघड़ेश्वर नाथ मंदिर के पास राहगीरों की प्यास बुझाने विगत 12 साल से प्याऊ जारी है। अघोर मठ पीठाधीश्वर बाबा श्री रुद्रानंद प्रचंडवेग नाथ जी ने बाबा महाऔघड़ेश्वर नाथ जी के नाम में प्याऊ खोला गया है, जहां राहगीरों के प्यास बुझाने के साथ ही उनके बैठकर आराम करने की व्यवस्था की गई है।राहगीरों को शुद्ध व ठंडा पेयजल मिले इसके लिए मिट्टी के बर्तन (मटका) में पानी रखा गया है। ताकि प्याऊ से राहगीरों को पेयजल की सुविधा मिलती रहे। भीषण गर्मी से लोग लोग बेहाल है, तेज़ धूप व गर्म पछुआ हवा के कारण लोगों को बार- बार प्यास बुझाने के लिए पानी की आवश्यकता पड़ रही है, ऐसे में राहगीरों को राहत पहुंचाने के लिए महाऔघड़ेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम अघोर मठ बिहावझोला मड़ेली में प्याऊ की व्यवस्था की गई है। जहां कोई भी आम आदमी जाकर नि:शुल्क शीतल पेय जल पी सकते हैं। इसकी जानकारी देते हुए धर्मेंद्र (मोंटू) चंद्राकर ने बताया कि महाऔघड़ेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम अघोर मठ बिहावझोला मड़ेली में मिट्टी से बने मटका में शीतल जल तथा प्लास्टिक का मग और गिलास रखवाया गया है, जिसमें प्रतिदिन शुद्ध पेयजल भर कर रखा जा रहा है ताकि लोगों को गर्मी के दिनों में राहत मिल सके। चंद्राकर जी ने बताया कि यह व्यवस्था जब तक गर्मी पड़ेगी,तब तक अघोर आश्रम की ओर से चलाई जाएगी। महाऔघड़ेश्वर धाम के इस पहल से आम लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। अघोर पीठाधीश्वर बाबा श्री रुद्रानंद प्रचंडवेग नाथ जी ने बताया एक जमाना था जब समाज में सामर्थ्यवान लोग राहगीरों के लिए प्याऊ की व्यवस्था करते थे। हर तबके का आदमी-चाहे अमीर या गरीब, अपनी प्यास बुझाता था, पर अब यह बीते जमाने की स्मृति बनकर रह गई हैं। बदलते समय में अब पानी की बोतलों का जमाना है। अगर कहीं प्याऊ है भी तो वह गरीब वर्ग के लोग, जो पानी खरीद नहीं सकते, वे ही अपना गला तर कर लेते हैं। ब्रजांचल से जुड़े हुए शहरों में गर्मी की शुरुआत के साथ ही सड़क के किनारे प्याऊ देखने को मिल जाएंगी। सड़क किनारे कई घड़े रख दिये जाते और एक झोपड़ीनुमा प्याऊ तैयार हो जाता था। सड़क वाली तरफ एक चौकोर छेद बनाया जाता था और वहीं से प्याऊ में तैनात आदमी प्यासे लोगों को निःशुल्क पानी पिलाता। गर्मी में राहगीरों के लिए प्याऊ एक मात्र साधन हुआ करती थी, तो अमीर, गरीब, स्त्री, पुरुष, बच्चे सभी प्याऊ पर पानी पीते थे। लेकिन अब समय बदल चुका है। पहले लोग धोती कुर्ता पहनते थे।अब शर्ट-पैंट पहनते हैं। पहले प्याऊ में जाते थे,अब बोतल खरीदते हैं, जो बोतल नहीं खरीद सकता वो दो रुपए का पानी का पाउच खरीद लेता है। बदलते समय के साथ लोग पीने वाले पानी के प्रति भी जागरूक हो गए हैं, शायद इसलिए भी कोई अब प्याऊ पर नहीं रुकते। आयुर्वेद के मुताबिक बात करें तो पानी पीने के लिए मिट्टी के घड़े को सबसे बेहतरीन माना गया है। मिट्टी के पानी का अन्य बर्तनों की तुलना में दूर दूर तक कोई मुकाबला नहीं है। आयुर्वेद के अनुसार घड़े में पांचों धातु- अग्नि, जल, मिट्टी, वायु होता है, वहीं घड़े की यह खासियत है कि अगर पानी का टीडीएस कम है तो यह उसे बढ़ा देता है और बहुत ज्यादा है तो इससे कम कर देता है, इसलिए लोगों को घड़े का ही पानी पीना चाहिए। दरअसल गर्मी के मौसम में हमारे शरीर की अग्नि कमजोर पड़ जाती है ऐसे में घड़े का पानी पीना काफी फायदेमंद होता है, इससे पित्त संतुलन रहता है और पेट की समस्याएं दूर होती है।..