उतई ।अतिथि देवो भवः भारत की प्राचीन परंपरा है जो आज भी हम निर्वहन कर रहे है द्वार पर पधारे अतिथि पूज्यनीय होता है सदैव अतिथि का सम्मान करें कभी निरादर न करे, जिस घर मे अतिथि का निरादर हो वह घर घर नही श्मशान कहा गया है,इसलिए सदैव अतिथि का सत्कार करना हर जीव का कर्त्तव्य है अतिथि भगवान के स्वरूप है ना जाने कब ईश्वर परीक्षा लेने के लिए अतिथि के रूप में ही हमारे द्वार पधारे जैसे राजा बलि के घर ईश्वर वामन रूप में पधार कर राजा बलि का उद्धार किये बलि ने तीन पग का दान दे प्रभु को बन्धन मे बांध लिए भक्तों के प्रेम की डोर मे प्रभु बंध जाते है।
ग्राम बोरीडीह की पावन धरा मे साहू परिवार के शुभसँकल्प से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस मे गजेंद्र मोक्ष, सागर मंथन, वामन अवतार की कथा पर भावाभिव्यक्ति करते हुए प्रवचनकर्ता मानस मर्मज्ञ स्वामी चंद्रकांत शर्मा ने कहा द्वार पर आए याचक को कभी भी खाली हाथ न भेजे स्वयं सामर्थ्यवान होकर याचक को खाली हाथ द्वार से बिदा करना महापाप है सामर्थ्यानुसार याचक को अवश्य ही दान दे कलिकाल में दान ही धर्म से जोड़ता है दान ही परमार्थ का एक प्रमुख साधन है दान करने में कभी पीछे मत रहे तत्परता से दान के लिए आगे बढ़े,जिस घर से याचक खाली हाथ लौटता है उस घर के लोग कभी सुखी नही रह सकते स्वयं भी दान करे और दूसरों को भी प्रेरित करे ,दान के लिए कभी रोक टोक न करे दान में रोकने वाले कि स्थिति शुक्राचार्य की भांति होती है इसलिए दान में कभी बाधा न बने।
आगे कथावाचक चंद्रकांत शर्मा जी ने कहा जीवन का जहर है कड़वा वचन याद रखे हम इंसान है इंसान ही रहे विषैला जंतु न बने जहर को त्यागे और सभी के लिए मीठे वचनों का प्रयोग करे, मीठे वचनों का प्रयोग कर लोगो से प्रेम प्राप्त किया जा सकता है,कड़वे वचन के प्रयोग से अपना भी जीवन सुखी नही हो सकता मीठा बोले।