जब जीवन में ज्ञान की ज्योति जलती है दुर्वासनाएँ, दुर्विचार नष्ट हो जाते हैं

बेमेतरा.हमारी संस्कृति ही हमारी शक्ति है दीये जलाने के पीछे सूक्ष्म आध्यात्मिक अर्थ । वैसे तो वल्ब अथवा टयूबलाईट से भी अंधेरा नष्ट होता है पर दीये के पीछे सूक्ष्म आध्यात्मिक अर्थ छिपा है। दीये में रहता तेल हमारी दुर्वासनाओं तथा दुर्विचारों का प्रतीक है । जब जीवन में ज्ञान की ज्योति जलती है दुर्वासनाएँ, दुर्विचार नष्ट हो जाते हैं । ज्योत की लौ सदा उठी रहती है, इसी प्रकार हम भी विचारों व कर्मो से सदा उन्नत होते रहे यह भी भावना है ।
एक दीए से अनंत दीए जलाए जा सकते हैं फिर भी दिए के प्रकाश में कोई कटौती नहीं होती इसी प्रकार ज्ञान बांटने से कम नहीं होता बल्कि अधिक बढ़ता है।
ईश्वर ज्ञानस्वरुप हैं । इसलिये हम प्रकाश की ज्ञान के रुप में पूजा करते हैं और ज्योति जलाते समय कहते हैं –
“दीपज्योति परब्रह्मा दीपज्योति जनार्दनः।
दीपो हरति मे पापं संध्यादीपं नमोऽस्तुते।।
दीपज्योति परब्रह्म, परम तत्व है, दीपज्योति साक्षात कल्याणकारी गुरु रूप में ईश्वर है। दीप हमारे पापों को, दुर्विचारों को हरता है। इसलिए दीप को नमस्कार है।
सोनू साहू अध्यक्ष युवा सेवा संघ बेमेतरा ने बताया कि परम् पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने हमेशा सबका मंगल, सबका भला और सभी को स्वस्थ, सुखी , सम्मानित जीवन का आशीर्वाद प्रदान कीया है।
भारत और भारतीय संस्कृति की रक्षा करते हुए भारत को विश्वगुरु बनाने का संकल्प भी बापूजी का ही है । सरकार और दुनिया के सामने ऐसी परिस्थिति आयेगी कि बापूजी के संकल्प को पूरा करना ही पड़ेगा । सुखी होने के लिए दुनिया को भारत का मार्ग दर्शन अपनाना ही होगा ।।

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