मड़ेली में पोला पर्व के साथ भोजली विसर्जन किया गया

      *-छुरा/*   छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले अन्तर्गत ग्राम मड़ेली में बीते सोमवार को प्रदेश का परम्परागत त्योहार पोला व भोजली विसर्जन बड़ी धूमधाम से मनाया गया। पोला का त्योहार भादों मास की अमावस्या को जिसे पिठोरी अमावस्या भी कहते हैं,,यह त्योहार अगस्त-सितंबर महीने में आता है,इस वर्ष 06 सितंबर को मनाया गया। छत्तीसगढ़ में इस त्योहार को बड़ी धूमधाम मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश कृषिप्रधान प्रदेश है, यहां कृषि को अच्छा बनाने में मवेशियों का विषेश योगदान होता है, पूरे भारत देश में मवेशियों की पूजा की जाती है। पोला का त्योहार उन्ही में से एक है जिस दिन कृषक गाय, बैलों की पूजा करते हैं,यह पोला त्योहार विशेष रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, एवं महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इस दिन बैलों का श्रृंगार कर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन बैलों से कोई काम नहीं कराया जाता है। बच्चें मिट्टी के बैल चलाते हैं। और घरों की महिलाएं व्यंजन बनाती है।

पोला त्योहार क्यों मनाया जाता है
विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे,जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है,तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे, कान्हा जब छोटे थे और यशोदा के यहां रहते थे,तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था,इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था,वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से पोला कहा जाने लगा,यह दिन बच्चों का दिन कहा जाता है।
ग्राम मड़ेली में वर्षों पुरानी भोजली बोने की परंपरा है। भोजली बोने के लिए सबसे पहले कुम्हार के घर से खाद-मिट्टी लाई जाती है,खाद-मिट्टी कुम्हार द्वारा पकाएं जाने वाले मटके और दीए से बचे “राख” को कहा जाता है। भोजली पर्व का यह नियम है कि खाद-मिट्टी कुम्हार के घर से लाया जाए। महतो के घर से चुरकी और टुकनी(टोकरी) लाये जाते हैं। इसके बाद गेहूं, धान,मूंग, चना,तिल, एवं अन्य बीजों को भीगोया जाता है फिर कृष्ण जन्माष्टमी के दिन शाम को निकाल कर चुरकी,टुकनी में डाला जाता है, फिर खाद को डाला जाता है। इस पर्व पर बैगा नौ दिनों तक भोजली के रूप में देवी-देवताओं की पूजा और प्रार्थना करते हैं।लोग गांव में उल्लाल के साथ नौ दिनों तक भजन-कीर्तन में लोक गीत गाएं जाते हैं। इन्हें भोजली गीत कहते हैं और ये कुछ इस तरह से है- देवी गंगा देवी गंगा लहर तिरंगा हो लहर तिरंगा हमरो भोजली दाई के भिगें आठों अंगाआहो देवी गंगा । भोजली याने भो-जली। इसका अर्थ है भूमि में जल हो यही कामना करती है महिलाएं इस गीत के माध्यम से। लोग मानते हैं कि भोजली के नौ दिनों तक पूजा करने से देवी-देवताएं गांव की रक्षा करेंगे। भादों माह अमावस्या पोला त्योहार के दिन विसर्जन किया जाता है। मड़ेली में भोजली विसर्जन त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। ‌ भोजली पर्व को लेकर विशेष आयोजन किया गया।. गांव की महिलाएं सिर में भोजली रखकर पूरे गांव में भ्रमण किए। घरों की महिलाएं भोजली की पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना कर श्री फल चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण किया । इसके बाद भोजली तालाब में विसर्जन किया गया। भोजली पर्व मनाने की परम्परा सन् 1730 से चली आ रही है, जो आज भी कायम है। यह भोजली छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा त्योहार है,जो पूरे विश्व में सिर्फ अपने अंतिम दिन यानि विसर्जन के दिन के लिए प्रसिद्ध है। किसान अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फ़सल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करते हैं।…. भोजली नई फसल की प्रतीक होती है। और इसे पोला त्योहार के दिन विसर्जन कर दिया जाता है।नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फसल की कामना की जाती है।

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