एनआरसी लाया गया तब हीमोग्लोबिन साढ़े तीन प्वाइंट था, तुरंत कराया गया ब्लड ट्रांसफ्यूजन, बच्चा अब बिल्कुल स्वस्थ …अब तक 70 बच्चों को मिली एनआरसी से संजीवनी


पाटन। दुर्ग जिले में संचालित एनआरसी सेंटर गंभीर कुपोषित बच्चों को कुपोषण के दानव से बचाने के लिए पूरी तरह भरोसेमंद साबित हो रहे हैं। आज एनआरसी पाटन से दो बच्चे डिस्चार्ज हुए। इनमें से एक बच्चा राघव पाटन विकासखंड के ग्राम फेकारी का था। बच्चे को आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से अभिभावक यहाँ पर लेकर आये थे। अब राघव पूरी तरह स्वस्थ है। इसकी जानकारी देते हुए बीएमओ डॉ. आशीष शर्मा ने बताया कि एनआरसी में हम बच्चों के कुपोषण के मूल में जाते हैं। बच्चा कुपोषित है तो इसके दो कारण हो सकते हैं एक तो उसके खानपान की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा अथवा कोई चिकित्कीय समस्या होगी। हमने प्रोटोकाल के मुताबिक सीबीसी, लीवर फंक्शन, किडनी फंक्शन आदि जरूरत के मुताबिक सभी टेस्ट किये। टेस्ट में पाया गया कि हीमोग्लोबिन बहुत ही कम है और साढ़े तीन चला गया है। तुरंत बच्चे को ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए जिला अस्पताल भेजा गया। बच्चे की त्वचा शुष्क थी, मुंह में छाले थे। पंद्रह दिन बार आज बच्चा डिस्चार्ज हुआ। राघव पूरी तरह स्वस्थ है और अब उसका हीमोग्लोबीन 10.5 हो गया है। वजन भी लगभग साढ़े सात किलोग्राम हो गया है। उल्लेखनीय है कि एनआरसी में डॉ. आशीष शर्मा के साथ ही डॉ. नवीन तिवारी एवं डॉ. आशिया परवीन की टीम ने बच्चे का डायग्नोस किया और ट्रीटमेंट आरंभ किया। टीम से श्रीमती छाया देवांगन, सुश्री विधि गौतम ने प्रोटोकॉल अनुसार नर्सिंग केअर स्टार्ट किया। बच्चे की माँ रेशमा ने बताया कि यहाँ एनआरसी में बहुत अच्छे इंतजाम हैं। अपने बेटे को पुनः पोषित देखकर बहुत खुशी हो रही है। डाक्टरों ने इसे ठीक करने के लिए हर संभव मेहनत की है। हम लोग 25 अगस्त को भर्ती हुए थे और अब घर जा रहे हैं। कुपोषण से मेरे बच्चे को मुक्ति मिली, मैं बहुत खुश हूँ। डॉ. शर्मा ने बताया कि अब तक इस एनआरसी से 70 से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण के दायरे से बाहर आ चुके हैं। कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे के मार्गदर्शन में इसकी बेहतरी के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। जीवनदीप समिति के माध्यम से कुक भी रखे गये हैं।
एपेटाइट टेस्ट के मुताबिक दिया जाता है डाइट- डॉ. आशीष शर्मा ने बताया कि केंद्र में एपेटाइट टेस्ट के मुताबिक बच्चे को खुराक दी जाती है। यदि एफ 100 आया तो बच्चे की पाचन क्षमता अच्छी मानी जाती है और इसके मुताबिक डाइट प्लान किया जाता है। 75 आने पर भिन्न तरह का कैलोरी डाइट दिया जाता है। खाने और दवाइयों के माध्यम से हेल्थ मैकअप की जाती है।
फीडिंग की सही टेक्निक सिखाई जाती है, भावात्मक संबंध भी- माताओं को फीडिंग की सही तकनीक बताई जाती है। साथ ही उन्हें कुछ मनोवैज्ञानिक टिप्स भी दिये जाते हैं जिनसे बच्चों से उनके रागात्मक संबंध और दृढ़ होते हैं। साथ ही ऐसे खिलौने बच्चों को दिये जाते हैं जिससे उनकी एकाग्रता बढ़ती है। फिजिकल एक्टिविटी बढ़ाने वाले खिलौने भी दिये जाते हैं।
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