पाटन के ग्राम कौही में आज स्वयं-भू शिवलिंग के दर्शन को जुटेंगे भक्तों की भीड़

पाटन. रानीतराई से तीन किलोमीटर दूर खारुन नदी के तट पर स्थित ग्राम कौही का प्राचीन शिव मंदिर धार्मिक एवं सामाजिक एकता का पर्याय बन चुका है। यहाँ विराजमान स्वयं-भू शिवलिंग की सबसे बड़ी विशेषता इसका लगातार बढ़ता आकार है। वर्तमान में शिवलिंग की ऊंचाई लगभग छः फ़ीट है । खुदाई के बाद से अब तक स्वयं-भू शिवलिंग का दूसरा छोर नही मिला है। मंदिर स्थापना एवं शिवलिंग को लेकर जनश्रुति है कि क्षेत्र के जमीदार विशाल प्रसाद तिवारी के पुत्र मोहनानंद को खुदाई के समय यह शिवलिंग मिला था।
स्वामी को आया था सपना
खारुन नदी के किनारे 15 एकड़ जमीन पर फैले आंनद मठ के मुख्य मंदिर में विराजमान स्वयं-भू शिवलिंग खुदाई करते हुए खंडित हो गया था। तब स्वामी मोहनानंद को स्वप्न में महादेव से साक्षात्कार हुआ। स्वयं-भू शिवलिंग के साथ मंदिर निर्माण का आदेश प्राप्त हुआ। जिसके बाद स्वामी जी ने जन सहयोग से मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण के पूर्व लगभग 20 से 25 फ़ीट खुदाई की गई थी लेकिन शिवलिंग का अंतिम छोर नही मिला।


स्वामी मोहनानंद तंत्र विद्या के साधक थे
आनंद मठ मंदिर के अध्यक्ष कौशल तिवारी, रमन टिकरिहा, राजेश तिवारी, नारायण साहू, जेठू साहू सहित अन्य ने बतलाया कि हमारे पूर्वजों के अनुसार ग्राम कौही के जागीरदार विशाल प्रसाद तिवारी के पुत्र मोहनानंद तंत्र विद्या के साधक थे। मोहननन्द ने ही माँ काली की प्राण प्रतिष्ठा की थी। महाकाली के सम्बंध में जनश्रुति है कि 100 वर्ष पूर्व स्वामी जी की साधना से कोलकाता से सूक्ष्म रूप में चलकर माँ काली यहाँ पहुंची थी। सूक्ष्म रूप में जलमार्ग से होते हुए खारुन के तट पर विराजमान हो गई। तब से लेकर आज तक माँ काली और महादेव की साथ साथ पूजा होती है।


तीन दिनों तक लगता है मेला
ग्राम कौही में आनद मठ मंदिर प्रांगण में महाशिवरात्रि पर्व पर तीन दिनों तक मेला लगता है। श्रद्धालुगण महाशिवरात्रि पर अपनी मनोकामना लेकर आते है और स्वम्भू शिवलिंग का दर्शन कर मनोकामना पूर्ण के लिये आशीर्वाद लेते है। यहां पर सभी समाजों के द्वारा अपने आराध्य का मंदिर की स्थापना भी की गई गई। जिसके कारण अब धार्मिक आस्था के साथ सामाजिक एकता के लिये भी इस जगह को ख्याति मिल रही है।

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