महाशिवरात्रि पर्व: विश्वविख्यात है भूतेश्वर महादेव जहां उमड़ती है श्रद्धालुयों का सैलाब

गरियाबंद. गरियाबंद के समीप विश्व प्रसिद्ध शिवलिंग है, जहां भूतेश्वरनाथ महादेव की प्राकृतिक शिवलिंग विराजमान है।जिसकी ऊंचाई वर्तमान में 65 फीट के करीब है। प्रतिवर्ष यहां पर श्रावण महीने एवं महाशिवरात्रि में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ देखने को मिलती है। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि में विशाल मेला लगता है। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु बड़ी संख्या में बाबा के दर्शन हेतु आते हैं।इस विशाल मेले की प्रसिद्धि का श्रेय जोइधा बाबा को जाता है। जिन्होंने इस विशाल प्राकृति शिवलिंग की गुफा में कई वर्षों तक तप किया। समीपस्थ ग्राम मजरकट्टा बाबा की जन्मभूमि है। युवा अवस्था में वे एक दिन अचानक घर से गायब हो गए। परिवार में दो भाई के अतिरिक्त उसके अन्य परिजन उन्हें ढूंढ़-ढूंढ़ कर परेशान हो गए। इस तरह चिंता में बाबा के पिता फगुवा राम भी नहीं रहे। माता राजबाई भिक्षा मांगकर जीवन यापन करती थीं। वे भी परलोक सिधार गई। वर्षों की तपस्या के बाद अचानक अधेड़ अवस्था में जोइधा बाबा नागा साधु के वेश में जंगल की ओर रात्रि तकरीबन दस बजे ग्राम चिखली पहुंचे, उस समय ग्राम में हनुमान मंदिर के पास कुछ युवक रामायण पाठ कर रहे थे। उन युवकों की नजर बाबा के ऊपर पड़ी जो कि पूर्णरूप से नागा अवस्था में थे। और बाबा की भाषा किसी की समझ में नहीं आ रही थी। गांव के कुछ लोग उसे दाल-चावल लेकर दर्शन हेतु आने लगे। इसी तरह उसके दो-तीन चेले गांव में ही बन गए। जो गांव से अपने परिवार को छोड़ जोइधा बाबा के साथ पुन: भूतेश्वर नाथ शिवलिंग के पास आश्रम बनाकर रहने लगे, लोगों की भीड़ दिनों दिन बढऩे लगी, वह आश्रम भक्ति भावना से हमेशा डूबा रहता था। एक दिन आश्रम में अचानक आग लग गई, बाबा आश्रम छोड़कर कहीं चले गए। जिसका पता नहीं चला। फिर ग्राम के कुछ लोग समिति गठित कर सिरकट्टी आश्रम वाले संत श्री सिया भुवनेश्वरी शरण महाराज के पास गए और उसे भूतेश्वर(भकूर्रा महादेव) बुलवाकर महाशिवरात्रि पर्व एवं मेला के रूप में मनाने प्रतिवर्ष संकल्प लिया गया। तब से आज तक यह स्थान अनेक देवी-देवताओं के मंदिरों का पावन तीर्थ बन गया।श्रावण महीने में हजारों की संख्या में बोल बम भक्तों की जयकारा यहां गूंजती रहती है। भूतेश्वर ग्राम गरियाबंद से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर जयभूतेश्वर नाथ नाम से एक समिति गठित की गई है, जो श्रावण महीने में पूरा माह तक आने वाले श्रद्धालुओं एवं कांवडिय़ों के रहने एवं भोजन का प्रबंध करती है। श्रावण महीने में प्रतिदिन धार्मिक आयोजन होते हैं।
अन्य तथ्यों के आधार पर यह बात भी सामने आई है कि गरियाबंद जिले में इस धार्मिक स्थल का अपना अलग ही महत्व है। यहां स्वयंभू भूतेश्वरनाथ महादेव शिवलिंग विख्यात है। यहां सावन माह में श्रद्वालुओं के द्वारा जलाभिषेक किया जाता है व प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर भव्य मेला का आयोजन होता है। महाशिवरात्रि मेले में उड़ीसा, महाराष्ट्र सहित अनेक प्रदेशों से हजारों श्रद्धालुगण पहुंचते हैं। राजिम कुंभ के बाद जिले में बड़ा धार्मिक आयोजन यहां होता है। सावन महीना में कांवरियों का जत्था उमंग व उत्साह के साथ शिवभक्तों के द्वारा जयकारा लगाते हुये भूतेश्वर महादेव में जल चढ़ाने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि की तैयारी महीना भर पहले से हो जाती है।यहां महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्वालु विशालकाय शिवलिंग का दर्शन करने उमड़ते हैं। नगर से भकुर्रा पहुंचने के लिये सैकड़ों वाहनों की व्यवस्था की जाती है। भूतेश्वर  नाथ की प्रसिद्धि के फलस्वरूप गरियाबंद जिले की पहचान धार्मिक क्षेत्र के रूप में होने लगी है। जिला मुख्यालय से मात्र तीन किमी की दूरी पर ग्राम-मरौदा के पास विशालतम शिवलिंग का मंदिर है। वनों और पहाड़ों से घिरे इस आस्था के संगम में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर हजारों लोगों की मौजूदगी में जलाभिषेक कर लोग सुख-शांति व समृद्धि की कामना करते हैं। भूतेश्वर नाथ प्रकृति प्रदत्त शिवलिंग विराजमान है।
शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले शोभासिंह नामक जमींदार ग्राम-पारागांव में हुआ करता था। शोभा सिंह प्रतिदिन शाम को एक विशेष आकृतिनुमा टीले से सांड के हुंकारने की आवाज़ सुनता था। यह बात गांव के लोगों को बताई। लोगों ने भी यह आवाज सुनी और आस-पास के इलाके में सांड जैसे जानवर की तलाश की, परन्तु दूर-दूर तक कुछ भी नहीं मिला। यह जानवर टीले के प्रति लोगों की श्रद्धा बढऩे लगी। तभी से लोगों को यहां  शिवलिंग के आकार की ओर ध्यान गया, तभी से शिवलिंग की पूजा प्रारंभ हुई। आज इस स्थान को भूतेश्वर  नाथ (भकुर्रा) महादेव के रूप में जाना-पहचाना जाता है. इस शिवलिंग के बारे में इसी से जाना जा सकता है कि सन 1959 में प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ठ क्रमांक 408 में इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है। विवरण के अनुसार विश्व में केवल दो ही ऐसे शिवलिंग हैं, जो स्वनिर्मित हैं, जिनमें से एक यह भी है। जमीन के नीचे इसकी गहराई का पता नहीं है। वस्तुत: यह शोध का विषय बना हुआ है। सावन व महाशिवरात्रि के पर्व पर इस विशाल शिवलिंग पर दर्शनार्थी अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर ईश्वर के प्रति अपनी आस्था प्रकट करते हैं।

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