रावघाट-राजहरा खोजने हाथी-घोड़ा सहित टीम लेकर 125 साल पहले पहुंचे थे बोस

मनोज साहू…

भिलाई. भिलाई स्टील प्लांट की रावघाट खदान क्षेत्र में बिछाई जा रही रेल लाइन की सुरक्षा में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहे सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवानों व अफसरों ने पहली बार बीएसपी की खदानों का इतिहास विस्तार से जाना।
एसएसबी क्षेत्रीय मुख्यालय (विशेष अभियान) के उपमहानिरीक्षक वी. विक्रमण की पहल पर रावघाट क्षेत्र में अंतागढ़ की 28 वीं बटालियन और केंवटी की 33 वीं बटालियन में भिलाई के इतिहास पर केंद्रित किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के लेखक व पत्रकार मुहम्मद जाकिर हुसैन ने पीपीटी व आडियो-वीडियो आधारित प्रेजेंटेशन दिया। बटालियन में सुरक्षा बलों के जवानों व अफसरों में भिलाई व इसकी लौह अयस्क खदानों के इतिहास से जुड़े सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासा शांत की। दोनों बटालियन में सत्र की शुरूआत फिल्मस डिवीजन की डाक्यूमेंट्री ‘भिलाई स्टोरीज’ के प्रदर्शन के साथ हुई।
अंतागढ़ में कमांडेंट मधुसूदन राव के मार्गदर्शन में हुए सत्र में सेकंड इन कमांडेंट जनार्दन मिश्रा ने आयोजन के महत्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन की किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ भिलाई से जुड़े के कई अंजाने और रोचक तथ्यों से रूबरू कराती है। चूंकि हम सभी भिलाई की एक महत्वपूर्ण परियोजना से जुड़े हैं, इसलिए इसका अतीत जानना बेहद जरूरी है। इस दौरान डिप्टी कमांडेंट विकास दीप, रवि भूषण व अवनीश कुमार चौबे सहित बटालियन के अन्य अफसर व जवान मौजूद थे।
इसी तरह केंवटी में कार्यकारी कमांडेंट और सेकंड इन कमांडेंट पीबी सैनी ने सत्र की अध्यक्षता की। डिप्टी कमांडेंट गौतम सागर ने आयोजन के महत्व पर रोशनी डालते हुए कहा कि रावघाट की खदानों पर भिलाई का भविष्य टिका है और इसकी रेललाइन के लिए हमारे जवान सुरक्षा दे रहे हैं। ऐसे में इस अंचल का इतिहास जानना हम सबके लिए बेहद जरूरी है।
इस दौरान अपने पीपीटी प्रेजेंटेशन में लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने भिलाई विशेषकर इसकी खदानों से जुड़े कई रोचक तथ्यों से जवानों व अफसरों को रूबरू कराया।
लेखक ने अपने प्रेजेंटेशन में उन विपरीत परिस्थितियों को बताया जब करीब सवा सौ साल पहले 1887 में भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक परमार्थ नाथ बोस ने पहली बार अधिकारिक रूप से दल्ली राजहरा से लेकर रावघाट तक के लौह अयस्क भंडारों की खोज की थी। इस दौरान बोस के साथ उनकी पत्नी और पूरा काफिला था और सभी लोग हाथियों में ड्रिल मशीनें लाद कर खुद घोड़ों पर सवार होकर आए थे। लेखक ने 1903 में जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा की यहां स्टील प्लांट शुरू करने की योजना से जुड़े तथ्य और 1955 में दल्ली राजहरा की पहाड़ियों में पहली ड्रिलिंग का रोचक ब्यौरा भी दिया।
इसके अलावा उन्होंने भिलाई में इस्पात संयंत्र स्थापित करने की पृष्ठभूमि और भिलाई से जुड़े अब तक के कई रोचक घटनाक्रम की जानकारी दी।
जिसमें भिलाई से तत्कालीन सोवियत संघ जाकर प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय इंजीनियरों के पहले दल के साथ जुड़े किस्से और पहले रूसी चीफ इंजीनियर की आकस्मिक मौत के बाद उपजी परिस्थितियों को भी बताया। इसी तरह भिलाई के परिप्रेक्ष्य में प्रगतिशील रशियन इंजीनियरों के अंधविश्वास और उनकी कुछ अनूठी परंपराओं का उन्होंने विशेष उल्लेख किया। लेखक ने अपने प्रस्तुतिकरण में छह दशक में बदलते भिलाई की तस्वीरों के साथ जुड़े कई प्रमुख तथ्य और भिलाई की संस्कृति का हिस्सा रहे रशियन परिवारों से जुड़ी बहुत सी रोचक बातें भी बताई। इसके साथ ही शहर की पहचान बन चुके कुछ महत्वपूर्ण भवनों के साथ जुड़े किस्से भी उन्होंने बताए। उन्होंने हिंदी फिल्मों में इस्तेमाल भिलाई के महत्वपूर्ण दृश्यों पर वीडियो फुटेज के माध्यम से जानकारी दी। प्रस्तुतिकरण के बाद मौजूद जवानों और अफसरों ने लेखक से भिलाई के इतिहास और वतर्मान से जुड़े कई सवाल भी पूछे। इस दौरान फीडबैक सत्र में जवानों ने प्रेजेंटेशन से हासिल जानकारियों को साझा करते हुए कहा कि पहली बार उन्हें इतनी रोचक जानकारियां मिली है। आयोजन के दौरान डिप्टी कमांडेंट (कम्यूनिकेशन) विनय कुमार और असिस्टेंट कमांडेंट रतीश कुमार पांडेय सहित तमाम अफसर मौजूद थे।

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