पाटन। पूरा विश्व आज विश्वजल दिवस मना रहा है लेकिन जीवन दायनी खारुन अब खुद ही हाफने लगी है कारण खारुन की आंचल से अवैध रेत खनन कर माफिया मालामाल हो रहे हैं और नदी किनारे निवास रत आम जनता इसकी खामियाजा भुगत रहे क्योंकि नदी में अब बिल्कुल भी रेत नही बची है इस कारण भूजल स्तर तेजी से घट रही है जिस कारण गावों में होने वाले सुख दुःख के कार्यक्रमों में निस्तारी के लिए बूंद भर पानी नहीं है इस कारण बेजुबान मवेशियों से लेकर पक्षियों को भी पानी के लिए तरसना पड़ रहा है गावों में बने सरपंच हो चाहे गांव के मुखिया उनके नजरो के सामने से ही रोज सैकड़ों ट्रेक्टर रेतो का परिवहन हो रहा है इसके अलावा खनिज विभाग मौन व्रत धारण कर बैठे हुवे है कभी कभार एकात पर कुछ जुर्माना लगा कर अपना पिंड छुड़ा लेते है ऐसे में ये कहना लाजमी है की रक्षक हि भक्षक बन कर खारुन नदी का अस्तित्व को ही मिटाने में तत्पर है क्योंकि एक तो अल्पवर्षा, दूसरा नदी के रेत का अंधाधुंध दोहन कर पानी को सूखने से इन्हें कोई सरोकार नहीं, कभी कलकल करती बहती खारुन, तरुणाई में भयानक रूप धारण कर बहती थी लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे खारुन बूढ़ी होकर हाफने लगी है, लेकिन गांव से लेकर राज्य सरकार में बैठे हुए जिम्मेदार लोगों का ध्यान नहीं है ओ दिन दूर नही जब आने वाली पीढ़ी पानी की एक_ एक बूंद को तरसेगा,तब सायद जल ही जीवन है का स्लोगन समझ में आए भी तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी,इसलिए अभी से प्रकृति से खिलवाड़ न करते हुवे उतना ही ले जितनी जरूरत हो तब ही हमारा विश्व जलदिवस मनाना सार्थक होगा।
सुख गई खारुन….नदी किनारे गांवों का भूजल स्तर तेजी से घट रहा है आखिर जिम्मेदार कौन?
