व्यावसायिक शिक्षा के नाम पर देव भाषा संस्कृत अध्ययन को हतोत्साहित करने का शिक्षा विभाग पर आरोप

  • सेजेस बेल्हारी एसएमडीसी अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री व प्रभारी मंत्री के नाम भाजपा जिलाध्यक्ष को शिकायत दर्ज कराया

(स्कूलों में वोकेशनल एजुकेशन के नाम पर केवल संस्कृत भाषा अध्ययन को छोड़ने का छात्रों पर दबाव, शिक्षा विभाग के अफसरों पर गंभीर आरोप–)

पाटन। स्वामी आत्मानंद हिंदी और अंग्रेजी माध्यम स्कूल बेल्हारी के शाला प्रबंधन समिति ने स्कूलों में व्यवसायिक शिक्षा के नाम पर ग्रामीण छात्रों से संस्कृत भाषा अध्ययन को बाधित करने का आरोप लगाते दुर्ग जिला शिक्षा विभाग के आदेश पर आपत्ति जताया और इसकी शिकायत जिलाधीश के समक्ष दर्ज कराया है ! मामले में एसएमडीसी के अध्यक्ष मनीष चन्द्राकर ने मुख्यमंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री के नाम जिला भाजपाध्यक्ष जितेंद्र वर्मा को ज्ञापन सौंपकर सरकारी स्कुलो में संस्कृत भाषा अध्ययन को हतोत्साहित करने वाले जिले के शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अफसरों पर कार्यवाही की मांग की है !
ज्ञापन में बताया गया कि केंद्र सरकार के आदेश पर राज्य के अनेक स्कूलों में वर्तमान शिक्षा सत्र से विभिन्न संकायों में कक्षा नवमीं से व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद में विद्यार्थियों और उनके पालको के स्व विवेक के आधार पर हिंदी,अग्रेंजी और संस्कृत में से किसी एक भाषा को ड्राप कर वोकेशनल एजुकेशन के लिये प्रवेश दिया जाना है इसके तहत बेल्हारी स्कूल में भी पावर और हेल्थ विषय कक्षा नवमी से 40 बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा दिया जाना है किंतु जिला शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश में केवल संस्कृत भाषा के स्थान पर वोकेशनल एजुकेशन देने के नाम पर छात्रों से संस्कृत भाषा को ड्राप करने जबरन सहमति लिया जा रहा है जो कि आपत्तिजनक है ! सेजेस शाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्री चन्द्राकर ने इसे देवभाषा संस्कृत का अपमान करार देते संस्कृत भाषा अध्ययन अध्यापन के कार्य को बाधित करने वाला तुगलकी और सनातन विरोधी निर्णय बताया है !

देश की नई पुरानी शिक्षा नीति में संस्कृत के अध्ययन को स्वीकारा गया है-चन्द्राकर

श्री चन्द्राकर ने आगे कहा कि स्कूलों में कक्षा छठवीं से दसवीं तक जैसे तैसे संस्कृत अध्ययन का कार्य चल रहा है उसमें केवल संस्कृत भाषा को लक्ष्य करके इसे हटाने के लिये छात्रों और शिक्षकों पर दबावपूर्वक सहमति लिया जाना संस्कृत का अनादर है ! श्री चन्द्राकर के मुताबिक संस्कृत भाषा में भारत की सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित है और इसलिए इस पर ध्यान देना और नई पीढ़ी के छात्रों के लिये इसे सुलभ और अध्धयनपरक बनाना आवश्यक है उन्होंने भारत की पुरानी शिक्षा नीति 1968 और 1986 में उल्लेखित बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें स्पष्ट रूप से संस्कृत के अध्ययन के महत्व को स्वीकार करते हुए देश की सांस्कृतिक विरासत व प्राचीन ज्ञान को आगे की पीढिय़ों तक पहुंचाने के लिए संस्कृत की शिक्षा को आवश्यक माना गया बावजूद शिक्षा विभाग के कर्णधार इसका बंटाधार करने पर आतुर है इस पर शासन स्तर से संज्ञान लेते हुए राज्य स्तर पर ठोस निर्णय लेने की आवश्यकता है

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *