महामाया ज्ञानियों की मती को बदल सकती है इसलिए ज्ञान रूपी समर्पण चाहिए-लाटा महाराज

आज कथा विराम लेगी-कथा कभी समाप्त नहीं होती-लाटा महाराज

रायपुर। श्री राजराजेश्वरी महामाया माता मंदिर पुरानी बस्ती रायपुर के तत्वाधान में आयोजित विवाह पंचमी के पावन अवसर पर जारी श्रीराम कथा के आठवें दिन गुरु शंकराचार्य के अनन्य शिष्य प्रवचन कर्ता पं शंभू शरण लाटा ने गुरु की महिमा का बखान करते हुए,श्रोता गणों से कहा कि मां महामाया के प्रांगण में जारी श्री राम कथा यह बताती है कि ज्ञानीनामपि चेतांसी देवी भगवती हि सा—-महामाया प्रयच्क्षति। मां महामाया ज्ञानियों की मती को बदल सकती है। इसलिए ज्ञान रूपी समर्पण आवश्यक है। उन्होंने सचेत किया कि प्रेमी से ज्यादा दुश्मन याद आते हैं।

आज 10 दिसंबर मंगलवार को कथा विराम लेगी। महाराज श्री ने कहा कथा कभी समाप्त नहीं होती है, बल्कि विराम लेती है। उन्होंने सिद्धि से बुद्धि बदल जाती है,चमत्कार से कुछ नहीं होता। संतों के सानिध्य से भक्ति मिलती है और भक्ति से मुक्ति और मुक्ति से प्रभु दर्शन का लाभ मिलता है‌‌। संतो के शहर में पहुंचने से मौत हाथ जोड़कर खड़ा रहता है। भाइयों बहनों भक्ति बाजार में नहीं मिलती है, निरंतर अर्थात बिना अंतर के प्रभु की भक्ति करनी चाहिए। भगवान शंकराचार्य गुरुदेव महाराज ने भक्ति से पति क्या भगवान वश में हो जाते हैं, यह बताया है। बाकी कोई वशीकरण चमत्कार के चक्कर में नहीं पढ़ना चाहिए। अन्यथा व्यक्ति पागल हो जाएगा, भक्ति योग में लक्ष्मण को अति आनंद प्राप्त हुआ, जितना ज्ञान से नहीं मिला था। सूर्पनखा का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा जिसका नख सूपा जैसे हो वही सुपनखा है।

आज कल कलयुग में बच्चियों नाखून नहीं काटती उनकी गति सूर्पनखा जैसे नाक कट कर होती है। सूर्पनखा वासना का प्रतीक है। जब वासना का आक्रमण हो तो उपासना की ओर देखना चाहिए। राम ने शूर्पणखा के आने पर सीता की ओर देखा। जब पर नारी वासना भाव से आपकी और देखें तो आपको अपनी पत्नी की ओर देखना चाहिए। यह मर्यादा पुरुषोत्तम ने बताया है। वासना का कान वैराग्य ही काट सकता है। भोगी व्यक्ति नहीं काट सकता। हम किसी से न मरे,मरे तो आपस में लड़े। रावण के वानर सेना एक दूसरे को राम दिख रहे थे। यह प्रभु की कृपा थी और अंत में रावण के वानर सेना एक दूसरे को राम समझकर नष्ट हो गए।

महाराज श्री ने छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया क्यों न हो की व्याख्या करते हुए कहा की छत्तीसगढ़ प्रभु राम का ननिहाल है। सूर्पनखा को लज्जा न होने का विस्तार करते हुए दुर्गा सप्तशती के प्रार्थना की ओर ध्यान आकृष्ट किया या देवी सर्वभूतेषु लज्जा रूपेण संस्थिता, शांति रूपेण संस्थिता। जब लज्जा नष्ट हो जाए तो शांति नष्ट हो जाती है और शांति नष्ट हो जाए तो श्रद्धा नष्ट हो जाएगी। श्रद्धा नष्ट होने से जीवन नष्ट हो जाता है‌ रामायण से यह शिक्षा मिलती है कि प्रेमी से ज्यादा दुश्मन याद आते हैं। मदिरापान पर व्यंग्य करते हुए कहा पीने की आदत हो तो उसे तो उसे छोड़ दो, क्योंकि राम रस पी लिए हैं‌। जो धर्म नहीं करता उसका धन नष्ट हो जाता है। धर्म-धन की रक्षा करता है। रावण बोले मैं भजन नहीं कर सकता क्योंकि तमाशा शरीर है। तामसी भोजन से भक्ति भजन नहीं होता है।इसलिए तामसी वस्तु का भोजन न करें। श्रद्धा हो तो झुको, स्वार्थ के लिए मत झुको। प्रभु राम पशु को मनुष्य बना देते हैं, जबकि रावण मनुष्य को पशु बनाते हैं‌।

महाराज श्री ने कहा मरमी,शस्त्री, मूर्ख,धनी, वैद्य चिकित्सक और भोजन बनाने वाले गुणी से कभी विरोध व शत्रुता नहीं करनी चाहिए। रावण मारीच को हिरण बनने कहते हैं। तब मानव से पशु बनने से इंकार करता है। रावण शस्त्र निकाल लेते हैं और मारीच को मारने के लिए आतुर होते हैं। मारीच सोच हिरण न बनने पर रावण मार डालेगा और हिरण बनेगा तो राम मार डालेंगे। उसने निर्णय लिया कि जब मरना निश्चित है तब राम के हाथों ही मारना उचित है। जब राम लक्ष्मण रेखा के अंदर लक्ष्मण को छोड़कर जाते हैं, तो लक्ष्मण से कहते हैं भाई बल बुद्धि विवेक व समय का ध्यान रखकर सीता की रक्षा करना। लक्ष्मण रेखा की लकीर देख फकीर पीछे हट गए। सीता ने मना किया रावण तू मरने चला है, मुझे हरने चला है‌। जिसे हराने चला है वह तेरी बस की बात नहीं है। पति की आज्ञा नहीं है, अन्यथा मैं अभी भस्म कर दूंगी। किंतु रामायण यही अधूरा रह जाएगी। चिता से बड़ी चिंता है। चिंता जीतेजी जला देती है, चिता तो मरने के बाद जलती है। चिंता चेहरे पर रखना चाहिए, चित्त में प्रसन्नता होनी चाहिए। लक्ष्मण ने श्रीराम से सीता की शिकायत नहीं की।छोटी-छोटी शिकायतों से परिवार टूटता है‌ जो किसी से कहता है वह सहता नहीं है, सहने वाला कभी कहता नहीं है। सीता हरण के बाद प्रभु राम रोते हुए लता पत्ता से पूछे सीता कहां गई। राम जी के रोने से महात्माओं की बुद्धि जागृत हो गई। उन्हें यह ज्ञान हुआ की शादी के बाद पत्नी से बिछड़ना पड़ता है, तब शादी करने का निर्णय त्याग दिए। प्रभु राम ने जटायु को गोद में उठाया है। प्रभु राम ने गोद में जटायु से पूछा कि तुम्हें किसने मार दिया बहुत कष्ट हो रहा है। तब जटायु ने कहा प्रभु मुझे कोई कष्ट नहीं हो रहा है। मैं आपकी गोद में बैठा हूं। जो राम की गोद में बैठ जाए उसे उसकी पीड़ा को राम हर लेते हैं।

महाराज मेरा पंख रावण नहीं तोड़ता तो मैं उड़ान भरते रहता और जो उड़ान भरते रहते हैं उन्हें प्रभु राम का गोद नहीं मिलता। ज्ञान रूपी कैमरे से फोटो खींचे तब बोध हुआ कि अंदर बाहर सब एक है। शादी में बर्बादी नहीं होना चाहिए,बल्कि महाराज श्री ने शादी में बलि प्रथा को अनुचित करार देते हुए कहा मांस भक्षण उचित नहीं है‌‌। मतंग ऋषि ने शबरी से कहा जो निंदा करने आए हैं वह निंदा ही करेंगे जो भजन करने आए हैं वह भजन ही करेंगे। शबरी की कथा में महाराज श्री ने भजन गाकर मंत्र मुक्त कर दिया। उन्होंने रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया को भाव बिभोर होकर श्रद्धालुओं को सुनाएं। उन्होंने इस बात का प्रतिकार किया कि प्रभु राम शबरी के जूठा बेर खाए थे। उन्होंने कहा रामायण में कंद मूल फल खाए यह वर्णित है। कहीं जुठे बेर खाए यह वर्णित नहीं है। उन्होंने उम्र बढ़ जाए तो व्यापार में कम भजन में भक्ति करने व संतों का सम्मान करने जो मिले उससे संतोष करने का ज्ञान दिया। नवधा भक्ति का विवरण करते हुए व्यापार में नहीं भजन में भक्ति करना, संतों का सम्मान करना, जीवन में संतोष रखना, सपना ना देखना, किसी से छल ना करना बताया। प्रभु ने कहा जैसे मां बच्चे को रखती है वैसी मैं भक्तों को रखता हूं। इसलिए नारद को विवाह करने से रोका।सीता शांति है आंखें बंद करने पर शांति मिलती है। वानर सब आंख बंद कर लिए थे।

न्यास समिति के अध्यक्ष आनंद शर्मा एवं व्यवस्थापक पं विजय कुमार झा ने धर्म प्रिय श्रद्धालुओं से अपील किया है कि आज कथा का अंतिम दिवस है, अधिक से अधिक संख्या में महामाया मंदिर पधार कर राम कथा रूपी गंगा में डुबकी लगाकर जीवन को धन्य करले।

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