पाटन।धान की फसल में इस दिनों सबसे ज्यादा देखी जाने वाली समस्या है काई। इसके निदान के लिए किसानों के पास खेत के पानी निकालने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता और पानी की कमी की वजह से किसान कोई उपाय नहीं कर पाता और फलस्वरूप उत्पादन में कमी आती है। पाटन क्षेत्र के खेतों में अधिकांश काई की समस्या से लगातार किसान परेशान रहते हैं, जिसके लिए कृषि विज्ञान के केंद्र पाहंदा अ के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार किसानों से संपर्क कर उन्हें इस काई की समस्या से निजात पाने के सभी उपाय बताए जा रहे हैं, जिससे काई पूरी तरह खत्म हो और उपज में भी वृद्धि हो।
किसानों के पानी भरे खेत में कंसे निकलने से पहले ही काई का जाल फैल जाता है, जिससे धान के पौधे तिरछे हो जाते हैं। पौधे में कंसे की संख्या एक या दो ही हो जाती है, जिससे बालियों की संख्या में कमी आती है ओर अंत में उपज में कमी आ जाती है, साथ ही काई फैल जाने से धान में डाले जाने वाले उर्वरक की मात्रा जमीन तक नहीं पहुंचती, जिससे पौधों में पोषक तत्व की कमी तो होती ही है साथ में उर्वरक की भी हानि होती है। काई की वजह से जल प्रदूषण तो होता ही है साथ ही धान की की जड़ को उचित मात्रा में सूर्य का प्रकाश भी नहीं पड़ता, जिससे पानी में आक्सीजन की मात्रा भी कम होती है और उपज कम हो जाती है।
पाटन क्षेत्र के किसानों के खेतों में काई एक आम समस्या बनती जा रही है और तो और धान के बाद दूसरे फसल लेने पर भी ये काई वापस आ जाता है और दोबारा फसल को भी प्रभावित करता है।
क्या है काई..
सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है अर्थात कह सकते हैं कि सूर्य का प्रकाश होने पर ही यह उक्त स्थान में पाया जाता है।
काई का समाधान ऐसे करें…
नीला थोथा(कॉपर सल्फेट) की 500 से 600 ग्राम मात्रा को अच्छे से पीस कर किसी सूती कपड़ा की छोटी छोटी पोटली बनाकर खेत में पांच से छह स्थान पर सामान दूरी पर खेत में भरे पानी में रख देवें, जिससे काई की परत फट जाती है। इस प्रकार के उपाय में 300 से 400 रुपये प्रति एकड़ का खर्च आता है। इसके अतिरिक्त किसान नीला थोथा को पीसकर उसमें रेत मिलाकर खेत में उसका छिड़काव कर सकते हैं। इस आसान तरीकों से किसान अपने खेत में काई से छुटकारा पा सकते हैं, और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं।ध्यान रहे खेतो में काई के बुलबुले दिखते ही उपचार शुरू करना होगा।
कृषि विज्ञान केंद्र पाहंदा अ के कृषि वैज्ञानिक लगातार किसानों को काई से निजात पाने के बारे में बताते रहते हैं। क्षेत्र के किसान भी काई प्रबंधन करने में लगातार सफलता हासिल कर रहे हैं।
-विजय जैन, कृषि वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र पाहंदा अ