ढोल-मंजीरे की थाप व जसगीत के साथ जोत-जवारा विसर्जित


सेलूद। नवरात्रि पर देवी मंदिरों एवं घरों में जलाए गए जोत और जवारा का बुधवार को तालाबों में विसर्जन हुआ। ढोल-मंजीरे की थाप और जसगीत के बीच श्रद्घालु देवी मंदिरों से जोत और जवारा लेकर निकले और देर शाम तक इनका विर्सजन किया। सेलूद अंचल में पिछले आठ दिनों से नवरात्र पर्व श्रद्घापूर्वक मनाया गया। नवरात्रि पर मंदिरों में जोत जलाए गए थे और जंवारा बोये गए थे। इनका विर्सजन का दौर आज पूरे दिनभर चला। जोत कलश व जंवारा सिर पर धारण कर महिलाएं कतारबद्घ होकर चल रही थी। उनके सामने गाजे बाजे के साथ जसगीत मंडलियां माता का जस गान करने हुए चल रही थी। इस दौरान कई महिलाएं और पुरूष देवी विराजमान होने की वजह से झूमते हुए मिले। बैगाओं की देखरेख में जोत जंवारा विसर्जित की गई।
तालाबों में विर्सजन देखने उमड़ी भीड़
सेलूद के शीतला मंदिर में प्रज्ज्वलित जोत और जवारा का विर्सजन बुधवार को दोपहर में किया गया। इसी तरह अचानकपुर के दंतेश्वरी मंदिर एवं शीतला मंदिर, ढौर,चुनकट्टा,गोंडपेन्ड्री,धौराभांठा,पतोरा,छाटा, बोहारडीह,महकाकला, महकाखुर्द, देउरझाल में भी जोत जंवारा का विसर्जन हुआ । इस दौरान तालाबों में विसर्जन देखने बड़ी संख्या में श्रद्घालु जुटे।
छत्तीसगढ़ परंपरा की दिखी झलक
विसर्जन के बाद तालाबों में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक नजारा भी सामने आया। यहां लोगों ने एक दूसरे के कानों में जवारा लगाकर जंवारा बदने की परंपरा भी निभाई। ऐसा कर वे एक दूसरे के सुख-दुख के साथी होने के बंधन से जुुड़ गए जिसे जीवनपर्यंत निभाना पड़ता है।

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