पाटन। खारून नदी के तट पर बसे गांव तरीघाट का मां त्रिमूर्ति महामाया मंदिर गांव के बुजुर्गो के मुताबिक इस ऐतिहासिक धरोहर की स्थापना हजारों साल पहले कल्चुरी वंश के राजाओ ने की थी,जिस पर अभी भी शोध चल रहा, मंदिर मे स्थापित त्रिमूर्ति स्वयं भू है,मां महामाया माता महालक्ष्मी माता महासरस्वती, एक ही स्थान पर विराजमान हैं।
ग्रामीण अपने शुभ काम शुरू करने से पहले माता को जरूर स्मरण करते हैं,
किया गया कार्य सफल हो किसी भी प्रकार की विघ्न बाधा उत्पन्न ना हो गांव वाले जब भी छोटी बड़ी हरेक कार्य करने से पहले माता का स्मरण, आशिर्वाद जरूर प्राप्त करने मंदिर जरूर जाते हैं ताकि उनके द्वारा कार्य सफल हो जाये।
माता के उपर भक्तों की प्रागाढ़ आस्था
मान्यता है कि यहां आने वाले नि संतान दंपति की मनोकामना जरूर पूरी होती है पांच पीढियों से माता की सेवा कर रहे दीपक बन गोस्वामी बताते हैं कि छत्तीसगढ़ समेत दूसरे राज्यों से भी भक्त यहां दर्शन संतान की कामना लेकर यहां पहुचते है मंदिर के गुबंद मे नाग देवता प्रतिमा है,सामने सिंह विराजमान है,उनके बुजुर्ग बताते हैं सालों पहले यहां रात मे शेर के दहाड़ की आवाज सुनाई देती थी।
गांव वाले लोगों ने जो बताया आश्चर्य चकित करने वाला
बैगा जयराम सिन्हा बताते हैं कि मंदिर निर्माण मे चूना गुड़ और काले पत्थर का उपयोग किया गया है जो जिले में नहीं मिलता 10-10फीट लंबे पत्थरों की जोड़ाई की गई है, पुरातत्व विभाग इसकी प्राचीनता देख हैरान है।
नवरात्रि पर्व पर दर्शन करने लगता है भक्तों का तांता
तरीघाट मे विराजमान मां महामाया मंदिर बहुत ही प्राचीन है जिसमें लोगों का विशेष नवरात्रि पर्व पर माता के दर्शन करने हेतु दूर दूर हे लोग आते हैं, और भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है।
कल्चुरी वंश के राजाओ ने कराया मंदिर निर्माण
गांव मे विराजमान मां महामाया मंदिर बहुत ही प्राचीन है जिसका निर्माण कल्चुरी वंश के राजाओं ने इसा पूर्व में कराया था।
आस्था के जोत हर साल जलते हैं
वर्तमान में क्वांर नवरात्र पर्व पर भक्तो द्वारा मनोकामना पूर्ति हेतु हर साल ज्योति जलाया जाता है इस वर्ष 186 ज्योति कलश की स्थापना की गई है।