मैनपुर@लीना ध्रुव- वनांचल क्षेत्रों में रविवार को कई गांवों में नवाखाई का त्योहार मनाया गया, नवा खाई पर्व विज्ञान और प्रकृति समस्त हैं। किसी भी खाने की वस्तु को आहार पूर्व उनकी उम्र को निर्धारण करने वा उनका सम्मान देने की पर्व है। क्योंकि धरती में किसी भी प्राणी वा जलीय जीव को जिंदा रहने के लिए किसी न किसी प्राणी वा जीव को खाना ही पड़ता है। हमारे पुरखों ने प्रकृति के नियम को समझा और संरक्षण संवर्धन के साथ आचरण करने व्यवस्था दी,इसी का हिस्सा नवा खाई पर्व भी है। नवा खाई प्रकृति वा सृष्टि की संतुलन को बनाए रखने की पर्व है। इस परंपरा को अक्षुण बनाए रखने के लिए आहार के पूर्व घर के जो मुखिया है, वो अपने घर के देवी देवता को अपने पुरखों को साक्षी मानकर पहले अर्पित करतें है। खेतों में जो धन पोटरा कर गर्भ में दूधिया व्यवस्था में होती है, उसे प्रसाद बना कर घर के देवी देवता में अर्पित करते है। फिर उसे चिवड़ा वा चावल के बने खीर में मिलाकर उसे प्रसाद के रूप में कोरिया वा सहजे का पत्ता में घर के लोगो को दिया जाता है। अपने फसल के नवा बीज हो या चिवड़ा उपयोग करने से पहले अपने कुल देवी देवता पुरखों को अर्पित किया जाता है।फिर बाद में लोग अपने जरूरत के अनुसार उपयोग करते है, फसल हों चाहे वनों से मिलने वाले कंदमूल फल फूल हो सभी का नेग करने की परंपरा है। नया खाने के बाद लोग एक दूसरे से नवा जोहर भेट करते है।अपने देवी देवता पुरखों से आशीर्वाद प्रदान करते है।