डॉ शालिनी यादव के कलम से,,,,,,
राजसी नीति
सदियों से रीति चली आ रही हैं..
राज वालों की नीति यही रही हैं..
इश्क करने को छोटी जाति पर नजर रही हैं..
महल मे कुवँरानी रजवाड़े से ही रही हैं..
राज वाले इश्क तो शान से करते है..
पर हक माँगो तो मुकर जाते है..
रूह कुचल कर चले जाते है..
फिर मानव-सेवा का स्वाँग रचते है..
इश्क में प्रतिशत नापते हैं..
समाज का वास्ता देते हैं..
आपसे बलिदान माँगते हैं..
स्वयं किसी और के हो जाते हैं..
जाँत-धर्म की बेड़ियाँ डाली जाती हैं..
मर्यादा की दुहाईयाँ दी जाती हैं..
दुध से मक्खी की तरह निकाली जाती हैं..
दुश्चरित्र सिर्फ वही कहलाई जाती हैं..
राजसी अंदाज भी उनके निराले हैं..
जब उनका दिल आए तो मद्य के प्याले हैं..
जी भर जाए तो आप बेहया कहलाने वाले हैं..
वो फिर भी हमेशा ईमानदार रहने वाले हैं..