डॉ शालिनी यादव की कलम से,,,
ख्वाब-ए-हयात
अदृश्य पीड़ा से अलंकृत
भावस्पंदित स्त्रीत्व;
निद्राविहिन
रात्रि के पहर गिनते हुए
कण कण में पसरी खामोशी;
गहरे अंधकार के मध्यांतर
भटकावशील मस्तिष्क से
कर रहा जद्दोजहद;
विरेचनात्मक अभिव्यक्ति
कभी संभव हो पाएगा
या रह जाएगा असंभव ही
ख्वाब-ए-हयात..?????