आदिवासी संस्कृति, प्राचीन संस्कृति, जिसके संरक्षण में आईएसबीएम विश्वविद्यालय सतत् कार्यरत: डॉ.शिव वरण शुक्ल आईएसबीएम विश्वविद्यालय में जनजाति युवकों के उत्थान के संदर्भ में परिचर्चा

लोकेश्वर सिन्हा गरियबन्द
जिले के छुरा ब्लॉक में आईएसबीएम विश्वविद्यालय परिसर में एक दिवसीय आदिवासी युवाओं के उत्थान के संदर्भ में परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के छायाचित्र पर दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना के साथ हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग, रायपुर (छ.ग) अध्यक्ष महामहोपाध्याय डॉ. शिव वरण शुक्ल सहित विशेष अतिथि में क्रमशः के सचिव डॉ. मनीषा शुक्ला, भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. अंजनी शुक्ला, अकादमिक सदस्य डॉ. उमेश मिश्रा एवं विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आनंद महलवार, कुलसचिव डॉ. बीपी भोल मंचस्थ रहे।
कार्यक्रम में आदिवासी युवाओं के उत्थान में विश्वविद्यालय के योगदान पर परिचर्चा का आयोजन हुआ। जिसके तीन विभाग का चयन किया गया। इस थीम में भूत, वर्तमान और भावी पीढ़ी के प्रतिनिधिमण्डल का गठन किया गया था। इस पैनल में अतीत के प्रतिनिधि मंडल के विशेषज्ञ के रूप में सेवानिवृत्त शिक्षक मोहन लाल ठाकुर ने आदिवासी शब्द का वास्तविक परिभाषा पर जोर देते हुए कहा कि आदिवासी का अर्थ आदिकालेन निवासी है। वहीं इसी विशेषज्ञ पैनल के सदस्य सेवानिवृत्त शिक्षक नीलकंठ ठाकुर ने आदिवासी परम्पराओं के संदर्भ में अपने विचार रखे। वर्तमान पैनल के विशेषज्ञ के रूप में आदिवासी नेतृत्व शीर्ष सरपंच नवापारा लेखराज धूर्वा ने आईएसबीएम विश्वविद्यालय के स्थापना एवं उससे आदिवासी युवाओं के उत्थान के संदर्भ में विश्वविद्यालय की प्रशंसा करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना से आदिवासी बच्चों के उत्थान में अभूतपूर्व योगदान दिया जा रहा है। वहीं कुलाधिपति डॉ. विनय एम अग्रवाल के सोच व विश्वविद्यालय के निर्माण से उच्चशिक्षा में आदिवासी युवाओं के उत्थान की प्रशंसा की। वहीं इसी पैनल के विशेषज्ञ सरपंच रसेला बिगेन्द्र ठाकुर ने विश्वविद्यालय के स्थापना के पूर्व युवाओं को उच्चशिक्षा के लिए भटकाव की स्थिति पर विशेष तर्क रखते हुए विश्वविद्यालय के स्थापना से आदिवासी बच्चों के उच्च शिक्षा के मार्ग में सुगमता पर विचार रखे गए। युवा पीढ़ी के संदर्भ में भावी कल के पैनल में आदिवासी युवाओं में चंद्रशेखर मरकाम कला संकाय, योगेश मांझी विधि संकाय,दीपक शोरी कला संकाय, दुषण ठाकुर कला संकाय के विद्यार्थीगण प्रतिभागी बने। विवि के द्वारा 6 ग्राम पंचायतों को गोद लिया गया है। जहाँ समय-समय पर विश्वविद्यालय के द्वारा जनजागृति एवं विविध शिक्षा मूलक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम के मुख्यअतिथि डॉ. शिव वरण शुक्ल ने आशीर्वचन के रूप में कहा आदिवासी संस्कृति हमारे देश की सबसे प्राचीन संस्कृति है जिसके संरक्षण में आईएसबीएम विश्वविद्यालय सतत कार्यरत कर रही है। कार्यक्रम की अगली कड़ी में सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत छत्तीसगढ़ के चारो दिशाओं में निवासित आदिवासियों के लोक संस्कृति एवं कला को जोड़ते हुए आदिवासी लोकनृत्य की प्रस्तुति की गई। कार्यक्रम का सफल संचालन विवि के ग्रंथपाल पुखराज यादव ने किया। इस अवसर पर विवि के डिप्टी रजिस्ट्रार शशी खुटिया, डीन डॉ. एन कुमार स्वामी, डीएसडब्लू डॉ. भूपेंद्र कुमार साहू, समस्त विभागों के विभागाध्यक्ष,सहायक प्राध्यापक एवं विवि के विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।

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