रिपोर्ट- अंकित बाला
पखांजुर। छत्तीसगढ़ में जैसे ही नए ज़िले की घोषणा हुई एक ओर जहां पूरा राज्य ख़ुशी मना रहा था वही दूसरी ओर छत्तीसगढ़ का ही एक ऐसा हिस्सा जो छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले से आख़री छोर जो महाराष्ट्र के सीमा से सटा हुआ पखांजुर जो अपने आप मे छोटे बड़े लगभग 200 गांव को खुद में समेटे हुए बैठा है जिसकी लगभग लाखों की आबादी की निगाहें भी जिले की आस लिए बैठा था कि अगला नाम पखांजुर का होगा पर ऐसा नही हुआ,
अब जानतें है आख़िर पखांजुर को जिला के रूप में इस क्षेत्र के लोग क्यो देखना चाहते है
क्षेत्र के कई गांव में लोगो से पूछा गया कि आखिर ज़िले की मांग किस वजह से किया जा रहा है? सालो पहले लगभग 40 हज़ार लोगो ने एक साथ एक मंच से इस क्षेत्र से अपनी मांग को लेकर गुहार लगाई थी जिसमे जिले की मांग प्रमुख रही जिसमें बड़े ,बूढे,बच्चों ने तक अपनी फरियाद लेकर राजधानी रायपुर तक भी हजारों की संख्या में एक आशा एक उम्मीद लिए गए थे, जिसके बाद भी कोई फैसला नही किया गया था,
जानते है यहाँ की जरूरतों को
क्षेत्र लगभग 200 गांव खुद में लाखो की संख्या को समेटे हुए है,
क्षेत्र नक्सल प्रभावित है
क्षेत्र का कई गई बारिश में टापू बन जाता है जहाँ न स्वस्थ न शिक्षा मिल पाता है
आज भी कई गांव क्षेत्र में मौजूद है जहाँ अबतक मूलभूत सुविधाएं मुहैया नही हो पाई
कांकेर ज़िला मुख्यालय से जिले का आख़री छोर का गांव 200 किमी की दूरी पर है
ग्रामीण जिला मुख्यालय के अधिकारियों तक पहुँचने नाकाम होते है
जिला मुख्यालय के आला अधिकारियों की नजरें इस क्षेत्र से अछूता रह जाता है जिसका खामियाजा आम लोगो को भुगतना पड़ जाता है
शासन के महत्वपूर्ण योजनाओं का फायदा या तो पहुँचा नही अगर पहुँच भी जाये तो भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ जाता है?
शिक्षा के नाम पर महाविद्यालय पर किसी आला अधिकारियों की नजरें नही विगत कई सालों से प्रोफेसर ही नही बच्चों का भविष्य अंधेरे में?
स्वास्थ्य के नाम पर अस्पताल में ब्लडबैंक नही जिससे न जाने जिला अस्पताल पहुँचते हुए कितनो की मौत हो गई
जो कि क्षेत्र लाखो की संख्या लिये बैठा है आये दिन दुर्घटना होना लाज़मी है पर ICU की सुविधा नही जिसके लिये जिला अस्पताल की दूरी 150 किमी का सफर तय करना होता है
इस क्षेत्र से किसानों द्वारा भारी मात्रा में धान, मक्का ,सब्जी,मछली, के अलावा वन विभाग का बॉस, इमारती लकड़ी, को इस क्षेत्र से एकमात्र सडक से लिया जाता है जिस सड़क का भारी वाहनों से जर्जर का खामियाजा उन आम लोगो को भुगतना पड़ता है जो इस 200 गांव में अपना जीवन बिताते हैं जिनके असुविधा पर किसी को कोई चिंता ही नही
क्षेत्र का ऐसा गांव जहाँ बच्चे कुपोषण के शिकार होते है खबरे प्रकाशित होती है जिले से आला अधिकारियों की टीम जांच में आती है फिर जाकर उन बच्चों को अस्पताल लगाकर उनका देखरेख किया जाता है बात यहाँ है कि आखिर गांव में किन वजह से बच्चे कुपोषण का शिकार हुए जबकि शासन की बड़ी बड़ी योजनाओं के दावे इन क्षेत्र में फेल होने का कारण यही है कि जिम्मेदार लोग सही तरीके से अपनी जिम्मेदारी पूरी नही करते उन्हें पता होता है कि जिला मुख्यालय से कोई जांच पर रेगुलर नही आते??
ऐसे मुद्दे से परेशान क्षेत्र के लाखों लोगों की समस्याओं के समाधान के लिये सभी ने विकल्प निकाला कि जिला मुख्यालय अगर पखांजुर बनता है तो लगभग 50 किमी के अंदर सभी छीटे बड़े 200 गांव शामिल होंगे सभी लोगो को सुविधा तो होगी पर साथ ही छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी वीर गैंद सिंग के वीर भूमि को सम्मान मिल जाएगा और शासन के जो महत्वपूर्ण योजनाएं चलाई जाती है जो किसान, मजदूरों, बच्चे, बूढे, विधवाओ के लालवा सभी के सुविधाओं के लिये चलती है जिले बनने से फायदा गांव के आख़री इंसान तक जरूर पहुँच पाएगी, इन क्षेत्र के लोगो का कहना है कि छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई क्षेत्र शायद ही मिलेगा जिसके जिला मुख्यालय तक पहुचाने के लिए 200 किमी का सफर तय करना पड़ता होगा,
अब बात आती गई है कि किन आधारों पर जिला बनाया जाता जाता किन बिंदु को मध्यानज़र रखते हुए जिले की घोषणा की जाती है ऐसा सभी दृष्टिकोण से पखांजुर जिला बनने योग्य है आख़री देखना है पखांजुर की किस्मत पर क्या मोहर लगता है?
या इस क्षेत्र के लोगो को अभी भी ऐसी मुश्किलों का सामना करते हुए जिंदगी बितानी होगी???