अमलीपदर आदिवासी क्षेत्र चिकली, धनोरा, कोतराडोंगरी पुलिया के अभाव से सैकड़ो जिंदगी दावं पर, प्रशासन मौन जिम्मेदार कौन

✍? रिपोर्टर विक्रम कुमार नागेश गरियाबंद

अमलिपदर के आदिवासी बहुल इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव बरसात में जिंदगी दांव पर

धनोरा, चिखली, कोतरा डोंगरी में पुलिया के मांग दर्जनों जनप्रतिनिधियों के निरीक्षण के बावजूद मांग अधूरा

बच्चों के स्कूल, खेती खार, राशन दुकान, मेडिकल जाने में बड़ी चुनौती, जान जोखिम में डाल कर पार करते हैं नाला

गरियाबंद / अमलिपदर : गरियाबंद जिला के आदिवासी विकासखंड मैनपुर के अंतर्गत आने वाले इन आदिवासी बहुल इलाकों में आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं खासकर बरसात के महीनों में हर रोज लोग जिंदगी दांव पर रखकर नाला पार करने पर मजबूर हो रहे है बता दे अमलीपदर से करीब 10 से 15 किलोमीटर की दूरी पर यह तीन इलाके में नाले हैं जिसके पार हजारों की तादात पर लोगों गुजर-बसर करते हैं और ये तीन नाला पर पुलिया की मांग विगत कई वर्षों से हो रहा है यहाँ तक कि कई जनप्रतिनिधियों ने भी यहाँ आकर लोगों को दिलासा देकर चले गए उसके बाद कोई पीछे मुड़कर नहीं देखा लिहाज़ा ग्रामीणों को जान हथेली में रखकर बरसात के दिनों में नाला पार करना पड़ रहा है

मिली जानकारी अनुसार यह तीन गांव जो पिछले 15 सालों से इस विकट समस्या से जूझ रहे है और यहाँ के ये तीन बड़े नाले खतरों को दावत दे रहे है 1. छैला चिकली का टूटा रपटा, 2. धनोरा का टूटा रपटा, 3. कोतरा डोंगरी न रपटा है नहीं पुलिया

ज्ञात हो की बरसात के महीनों पर पानी भर जाने से यहाँ नदी नाले उफान पर रहते हैं जिससे इन हजारों लोगों का मुख्य धारा से संपर्क टूट जाता है बड़ी दुविधा इन ग्रामीणों को झेलना पड़ता है बरसात के महीनों में बच्चों के स्कूल जाने किसानों को खेती खार किसानी काम करने आपातकालीन स्थिति पर मेडिकल सुविधा साथ ही रोजमर्रा के लिए राशन लाने ले जाने में बहुत ही परेशानियों का सामना ग्रामीणों को उठाना पड़ता है यहाँ तक कि कई कई दिनों तक लोगों को भूखे पेट दिन काटना भी पड़ जाता है जब पानी से नाला भर जाता है

जनप्रतिनिधियों ने निरीक्षण कर पुल पुलिया बनाने का किया था वादा

वहीं स्थानीय लोग बताते हैं कि इन जगहों पर अब तक कई जनप्रतिनिधि यहां आकर जा चुके हैं तरह-तरह की बातें बता चुके हैं कि इन इलाकों के लोगों को विकास के लिए हम इस जगह पर पुलिया बनाएंगे जिससे लोगों को राहत मिलेगा लोगों को जान जोखिम में डालकर नाला पार करना नहीं पड़ेगा पर अफसोस के साथ बताना पड़ रहा है कि लोगों से किया गया वादा आज भी अधूरा है इस इलाके के लोग इस आस पर आस लगाए बैठे हैं कि कभी तो इस मुसीबत से लोगों को निजात मिलेगा कभी तो विकास की मुख्यधारा पर इस इलाके के लोगों को भी जोड़ा जाएगा पर वादे और भरोसा आज धरे के धरे रह गए हैं लोग आज आजादी के कई वर्षों के बाद भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जिंदगी काटना पड़ रहा है, हर रोज जिंदगियों को दांव में रखकर नदी नाला पार करने पर मजबूर हो रहे है

कोतरा डोंगरी का नाला

खरीपथरा पंचायत में आने वाला यह नाला पर पुलिया बनाने का मांग पिछले कई वर्षों से चल रहा है बता दें इससे नाला के उस पार करीब 10 से 15 छोटे छोटे बस्ती बसते हैं जहां सैकड़ो लोग रहते हैं और इन लोगों तक नाले के चलते बरसात के महीनों में शासन की सुविधाएं नहीं पहुंच पाता है वही इस नाले पर पुलिया का मांग कई वर्षों से चल रहा है ग्रामीणों ने बताया कि यहां तत्कालिक विधायक भी पहुंचे थे भरोसा भी दिलाई थी कि यहां पुलिया बनाया जाएगा पर आज तक का पुलिया का नामोनिशान नजर नहीं आया

धनोरा पीपलखूंटा का रपटा 15 साल से टूटा हुआ है

धनोरा और पीपल खुटा के बीच पर एक रपटा बनाया गया था यहां जंगलों से होकर गुजरता हुआ पानी विशाल वेग लेकर इस बीच निकलता है जिसकी रोकथाम के लिए लोगों की आवाजाही के लिए रास्ता का निर्माण किया गया था वही ग्रामीणों ने जानकारी देते हुए बताया कि आज से 15 साल पहले यह रपटा टूटा पड़ा हुआ है पर अब तक शासन प्रशासन की अनदेखी के चलते रपटा का जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है वहीं ग्रामीणों का कहना है कि यहां रपटा नहीं बल्कि पुलिया की आवश्यकता है उन्होंने जमीनी स्तर पर अब तक कई आवेदन दे चुके है कई अधिकारियों के दफ्तर पर दरवाजा खटखटा चुके है पर किसी का जवाब अब तक नहीं मिल पाया है वहीं कुछ जानकार बताते हैं कि एक इंजीनियर का टीम नाले पर पहुंचा था उन्होंने नाले के दोनों छोर कुछ मशीनें लगाकर निरीक्षण भी किया यहां की मिट्टी भी ले गए थे तब लोगों का उम्मीदें बढ़ गया था यहां पुलिया निर्माण होगा पर दुर्भाग्यपूर्ण इंजीनियर का टीम जब वहाँ से गई वापस कभी नहीं आया और लोग आज भी शासन से यह उम्मीद लगा कर बैठे हैं कि धनोरा और पिपलखुटा यहाँ पुलिया का निर्माण होगा

छैला चिकली क्षेत्र के सैकड़ो लोग की बड़ी मुशीबत नहीं बन रहा पुलिया

अमलिपदर क्षेत्र में जाना पहचाना जाता है छैला चिकली को बड़ी बस्ती होने के साथ साथ आदिवासी बहुल इलाका है पर सरकार की सहायता यहां आते आते शायद कमजोर हो जाता है बतादे विगत कई वर्षों से यहाँ के नाला पर बनाया गया रपटा टूट कर अलग हो गया है पानी की रफ्तार इतनी तेज रहता है की पलक झपकते ही बड़ा हादसा हो जाता है वाबजूद मजबूरन एक दूसरे के सहयोग से लोग इस नाला को पार कर रहे हैं

यहां भी अब तक कई जनप्रतिनिधियों ने अपनी उपस्थिति देकर लोगों को भरोसा दिलाया था की बहुत ही जल्द इस रपटा को पुलिया बनाया जाएगा पर आज तक वादा पूरा ना हो पाया है और लोगों को सुविधा देने वाली बात अधूरा साबित हुआ है स्थानीय लोगों का कहना है कि इस इलाके में दर्जनों गांव इसी नाले के उफान के चलते हैं अपने चार दीवारों में कैद होकर रह जाते हैं बरसात के वक्त जरूरत के सुविधा से वंचित रह जाते हैं क्योंकि इस पार से उस पार जाना मौत को दावत देना जैसा है इस इलाके में हजारों लोग रहते हैं जो इस समस्या का सामना हर रोज कर रहे है

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