✍? रिपोर्टर विक्रम कुमार नागेश गरियाबंद
गरियाबंद :- जिले के वनों में बारिश के मौसम में यहां एक बेहद महंगी व खास बहु प्रचलित सब्जी मिलती है , जिसे बोड़ा के नाम से जाना जाता है , बोड़ा यह एक मशरूम का ही प्रजाति है , मानसून का मौसम और पहली बारिश से जंगलों में ये सब्जी साल के पेड़ के नीचे पाई जाती है , यह बोड़ा सिर्फ बारिश के मौसम में ही मिलती है , स्वाद और पौष्टिकता से भरपूर ये सब्जी फिलहाल तीन से चार सौ रुपया किलो में बिक रही है । और इसकी मांग इतनी रहती है कि लोग इसके लिए पीछे ही पड़ जाते है यह तस्वीरें न्यूज़ 24 कैरेट कॉम को हमारे किसी सब्सक्राइबर बन्धु ने भेजा हैजिले के कुछ जगहों की में इन दिनों सबसे महंगी सब्जी के रूप में बोड़ा की आवक बढ़ गई है , बाजार में इसे खरीदने वालों की भीड़ लग रहती है, बोड़ा साल वृक्ष के नीचे उपजने वाला एक मशरूम है , जानकारों की माने तो इसमें दूसरे मशरूमों की तरह कई पोषक तत्व पाए जाते हैं , इसलिए लोग इसे बड़े शौक से खाते हैं , प्रति वर्ष बारिश के पूर्व साल वनों से ग्रामीण बोड़ा संग्रहित करते हैं और उसे हाट – बाजारों में बेचने लाते हैं , यह मशरूम सिर्फ साल वृक्ष के नीचे ही बारिश के दिनों में उपजता है , यह सब्जी देश के सबसे महंगी सब्जीयों में गिना जाता है , शहरी क्षेत्र के लोग इसे खाने के लिए बेहद तरसते है , और जब शहर के किसी बाजार में बोड़ा ( मशरूम ) बिकने लगता है , वंहा ज्यादा कि संख्या में लोगों की भीड़ नज़र आते है , वर्ष में एक बार ही यह सब्जी जंगलो में साल वृक्ष के नीचे पाये जाते है , इसे खाने के लिए लोग प्रतिवर्ष इंतजार करते है ,
यह बोड़ा प्राकृति का बेमिसाल उपहार
बोड़ा धरती से निकलने वाला जंगली खाद्य है , प्रति वर्ष यह केवल साल वृक्ष के नीचे से ही निकलता है , जब बादलों की गर्जना होती है, उमस का वातावरण हो जाता है , उस समय बोड़ा स्वत मुलायम जमीन के अंदर से गोल का आकार लेता है , ग्रामीण जमीन खोदकर बोड़ा निकालते हैं , बोड़ा आकार में आलू से लगभग आधा या उससे भी छोटा होता है रंग इसका भूरा होता है , ऊपर पतली सी परत एवं अंदर सफेद गुदा भरा होता है , बोड़ा को बिना सब्जी बनाये भी खा लेते है , बिना सब्जी बनाये इसका स्वाद मीठा जैसा लगता है । यह प्रकृति का एक बेमिसाल उपहारों में से एक है जानकार बताते हैं बोड़ा में आवश्यक खनिज लवण एवं कार्बोहाईड्रेट भरपूर मात्रा में होता है , इसकी सब्जी बेहद स्वादिष्ट होती है , बाजार में आते ही लोग इसे खरीदने के लिए टूट पड़ते है , इसकी आवक सिर्फ शुरूआती बरसात तक लगभग एक माह तक ही होती है , इसलिए इसकी कीमत भी ज्यादा होती है ।
वनांचल क्षेत्र के आदिवासियों की मान्यता अनुसार
मिली जानकारी अनुसार वनांचल क्षेत्र के आदिवासियों में ऐसा मान्यता है कि बारिश जितनी ज्यादा होगी , बोड़ा उतना ही अधिक निकलेगा , वे यह भी मानते हैं कि बादल जितना कडकेगा , बोड़ा उतना ही निकलेगा , साल वृक्षों के जंगल में जहां बोड़ा निकलना होता है , वहां जमीन में दरार पड जाती है , नुकीले औजार से खोद कर उसे निकाल लिया जाता है , यह मशरूम की ही एक प्रजाति है यह सिर्फ रंग-रूप में ही नहीं गुणों में भी मशरूम के समान है , इसमें कई पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं ।