नई दिल्ली : 2014 में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए, 10 साल की कांग्रेस सरकार की विदाई हुई और देश के अति लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जी ने पदभार संभाला। उसके बाद केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार काम करना प्रारंभ किया। फिर राज्यों के विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए, झारखंड मध्य प्रदेश राजस्थान छत्तीसगढ़ इनमें से मुख्य स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस समय के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह थे।
चारों राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें थी, भाजपा की विदाई हो गयी। दलबदल करा कर मध्यप्रदेश में पुनः भाजपा की सरकार बना ली गयीसमाजफिर हरियाणा की विधानसभा के चुनाव संपन्न हुए, आखिर हरियाणा में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार अल्पमत में आ गई और उसे जजपा से समझौता कर सरकार बनानी पड़ी।
उसके बाद पश्चिम बंगाल केरल तमिल नाडु पुडुचेरी आसाम के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, जो अभी हाल ही में हुए आसाम में भाजपा ने अपनी सरकार बचाने में सफलता प्राप्त की है, पुडुचेरी चूंकि केंद्र शासित राज्य है, वहां सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। केरल तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। पश्चिम बंगाल में 2 वर्षों से पूरी केंद्रीय भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी केंद्रीय मंत्री परिषद के सदस्य, भाजपा के समस्त राष्ट्रीय और राज्य स्तर के संगठन मंत्री और स्टार प्रचारक के रूप में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह थे। लेकिन पश्चिम बंगाल में जबरदस्त दलबदल करवाने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटाने में असफल रहे। अभी स्थिति यह हो गई कि जो लोग तो तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे, उसमें भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए मुकुल राय सहित अधिकांश नेता वापस ममता बनर्जी की पार्टी में शामिल होने के लिए कतार में है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 3 जून से 5 जून तक राष्ट्रीय स्तर के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की बैठक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी की उपस्थिति में नई दिल्ली में संपन्न हुई। चर्चा यह है कि 2014 के बाद केंद्र में सरकार आने के बाद, राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार की, जब इसकी समीक्षा की गी, तो शायद निर्णय यह निकला कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी का चेहरा चुनाव में जो उपयोग किया गया, वह कारगर सिद्ध नहीं हुआ।
इसीलिए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव जो 2022 में होने वाले हैं, जोकि सेमीफाइनल विधानसभा चुनाव माना जा रहा है, 2024 में लोकसभा के चुनाव है, वहां नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चेहरे से परहेज करने का निर्णय लिया गया।
इतना ही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने के बारे में गंभीरता से विचार किया गया, उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के समय अधिकांश ब्राह्मण नेताओं की कार्यकर्ताओं की जो हत्या हुई, उससे भी ब्राह्मण समाज वहां पर नाराज है, इस डैमेज कंट्रोल करने के लिए ही कांग्रेस के चले हुए कारतूस जितिन प्रसाद को 9 जून को कांग्रेस से भाजपा में लाया गया। एक आईएएस जो रिटायर हो चुके हैं, शर्मा जी, जो गुजरात केडर के थे, मूलनिवासी उत्तर प्रदेश के हैं। हालांकि वह भूमिहार हैं शर्मा लिखते हैं, उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने का भी हलचल तेज है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं जिनकी संख्या 10 से 12% है, जो भाजपा के वोट बैंक रहे हैं। उन्हें वापस मूल धारा मिलाकर भाजपा के पक्ष में ही उनका मतदान हो, इसकी रणनीति पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मास्टर प्लान तैयार किया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है कि उसके सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का मुख्यालय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ होगी। कोविड-19 के 2020 और 2021 की जो महामारी है, जिसे केंद्र सरकार कंट्रोल करने में असफल साबित हुई। जिससे देश की जनता में गंभीर नाराजगी है। उसे भी कंट्रोल करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा को दिशा निर्देश दिए हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन भी पूरे देश में डैमेज कंट्रोल के लिए मतदान केंद्र तक जाएंगे।
उपरोक्त सब बातों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह का चेहरा ढलता जा रहा है, तेजी से देश में असफल होता जा रहा है और संघ इस बात को आंतरिक रुप से स्वीकार कर रही है। लेकिन अभी वह समय नहीं है कि कोई बड़ा परिवर्तन किया जाए, केंद्रीय मंत्री परिषद में भी वरिष्ठ मंत्रियों को जो कभी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं, उन्हें भी जो दरकिनार कर दिया गया है। उसको लेकर भी गंभीर मंत्रणा की गयी, अन्य मंत्रियों में भी गंभीर नाराजगी है।
यह संघ के संज्ञान में आया है अब आगे क्या परिणाम सामने आते हैं इसका देश की जनता और भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता को सोचना समझना है।