? ब्यूरो रिपोर्ट विक्रम कुमार नागेश गरियाबंद
मैनपुर। इन दिनों मैनपुर क्षेत्र के ग्राम दसपुर में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है।
भागवत कथा के श्रवण मनुष्य को परिपक्व बनाती है निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है तथा उनके शब्दों में मजबूती स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।यह मात्र कथा कहानी नहीं बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने का काम करती है।उक्त बातें दसपुर में चल रहे हैं भागवत कथा के तीसरे दिन लोहरसी के भागवताचार्य पंडित देवेंद्र तिवारी ने कही।उन्होंने अजामिल प्रसंग पर कहा कि पिता के द्वारा जो संस्कार मिले थे उन्हीं का नतीजा है कि अजामिल को जीवन सुधारने का मौका मिला। वह वेश्या स्त्री के चक्कर में आकर अपना धर्म भूल गया था। दिशा भटकने के बाद अच्छे कर्म सही मार्ग में लाने के लिए बार-बार प्रेरित करते हैं उनके नौ संतान के बाद दसवा संतान आने को था उसी समय कुछ साधु उनके घर में ठहरे और कहा कि आने वाला संतान का नाम नारायण रखना। कहे मुताबिक दसवां पुत्र का नाम नारायण रख दिया। समय गुजरता गया अवधि पूर्ण होने के बाद उनके प्राण हरने के लिए यमराज जैसे ही आए उनको देखकर अजामिल जोर-जोर से नारायण नारायण चिल्लाने लगा। इन्हें सुनकर उनका पुत्र तो नहीं आया लेकिन सचमुच में भगवान विष्णु नारायण रूप में आ गए और उन्हें बचा कर एक और मौका दे दिया।इसमें उन्होंने किए हुए गलतियों का प्रायश्चित किया तथा एक अच्छी जीवन की शुरुआत की। नतीजा भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ लोक जाने का अवसर मिला।अच्छे काम करने के लिए उपयुक्त अवसर की तलाश करना ठीक नहीं है जीवन कब तक हमें मिला है इसका निर्धारण हम नहीं करते तो फिर अहंकार किसलिए। किसी पता है कब यह शरीर मृत हो जाएगी। जब तक जीवन मिला है अपने कर्म को सुधार कर दुर्लभ मनुष्य जीवन पाने का सदुपयोग किया जाए।पंडित तिवारी ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ संस्कृतियों से लबालब है किसी के घर मेहमान जाने पर वह यह नहीं पूछता कि आप कौन हो बल्कि एक लोटा पानी देकर प्रणाम करते हुए उनकी आवभगत करते हैं। उन्हें चाय भी पिलाते हैं बाद में पूछते हैं कि आपको किससे मिलना है। ऐसी संस्कृति अन्य जगहों पर नहीं मिलती।दीगर प्रदेश एवं विदेश से आने वाले लोग छत्तीसगढ़ से जानकारी लेकर अपने जगहों पर प्रचार प्रसार करते हैं लेकिन हम पश्चिमी सभ्यता की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं यह चिंता का विषय बना हुआ है।जब हमारी संस्कृति को पश्चिम के देश अपना रहे हैं और हम वहां की सभ्यता के पीछे पड़े हुए हैं इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
पंडित तिवारी ने जड़ भरत चरित्र पर कहा कि जड़ भरत का प्रकृत नाम भरत है जो पूर्व जन्म में स्वयंभू बंशी ऋषभदेव के पुत्र थे।मृग के छौने में तन्मय हो जाने के कारण इनका ज्ञान अवद्ध हो गया था और वह जड़वत हो गए थे जिससे यह जड़ भरत कहलाए। जड़ भरत की कथा विष्णु पुराण की द्वितीय भाग और भागवत पुराण के पंचम कांड में आती है। इसके अलावा यह जड़भरत की कथा आदि पुराण नामक जैन ग्रंथ में भी आती है।उन्होंने आगे कहा कि उनके नेक कर्मों के कारण ही इस देश का नाम भारत पड़ा। कर्म ऐसे करो की नाम सदा के लिए अमर हो जाए उन्होंने कर्म के महत्व को समझा और तीनो लोक में अपना नाम अमर कर लिया।ग्रामवासियों के सहयोग से आयोजित भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह में श्रोतागण लगातार अपनी उपस्थिति प्रदान कर रहे हैं खासतौर से महिलाएं बड़ी संख्या में उमड़ रही है।इस दरम्यान गीत-संगीत एवं भजन से माहौल भक्तिमय हो रहा है।पूरा गांव भागवत महापुराण की कथा में रम गया है।