माघी पुन्नी मेला में लगे गढ़कलेवा के स्टाॅल में छत्तीसगढ़ी पकवानों की महक,,, छत्तीसगढ़ी व्यंजन का आनंद ले रहे दर्शनार्थी

? ब्यूरो रिपोर्ट विक्रम कुमार नागेश गरियाबंद

राजिम माघी पुन्नी मेला में जय बाबा गरीबनाथ स्वसहायता समूह राजिम के द्वारा संचालित स्टाॅल में मेले घुमने आयें दर्शक एकाएक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को देखकर वहां झूम गये। रायपुर स्थित गढ़ कलेवा से प्रेरणा लेकर समूह की अध्यक्ष प्रीति पांडे एवं उनके सदस्यों द्वारा मुख्यमंच के पास में गढ़ कलेवा नाम से विभिन्न छत्तीसगढ़ी व्यंजन बना रहे है। जिसमें प्रमुख रूप से खाजा, पीड़िया, अरसा, ठेठरी, खुरमी, फरा चैसेला, मूंग बडा, उड़द बडा, गुलगुला, पानरोटी और चाय आदि बनाया जा रहा है। इसमें स्वाद के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी रंग देखने को मिलता है। इस समूह की सचिव रोशनी शिंदे ने News24 कैरेट संवाददाता को बताया की अब तक यहाॅ के छत्तीसगढ़ी पकवानों का स्वाद पुलिस वर्ग, एसडीएम, तहसीलदार, कलेक्टर एवं सामान्यवर्ग के लगभग 1 हजार से अधिक लोग पारंपरिक पकवान को खाकर तारीफ किये बिना यहा से नहीं गये है। सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक यहाॅ भीड़ बनी रहती है। इस कार्य में लगभग 11 सदस्य लगें हुए है। फिर भी जब मांग बढ़ती है तो लोगों की कमी पड़ जाती है। कई लोग आर्डर में भी अरसा, पीड़िया, ठेठरी बंधवाकर ले जा रहे है। 16 जुलाई 2018 से समूह की स्थापना हुई है तब से लेकर हम प्रतिवर्ष यहाॅ अपने हाथ से बना स्वादिष्ट पकवान खिला रहे है। गढ़कलेवा का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ी व्यंजन जो आज प्रायः घरों से लुप्त हो रही है उसी को पुनः जीवित करने के उद्देश्य से महिला समूह राजिम मेले में स्टाॅल लगाकर इसकी जानकारी दे रहे है। आज बच्चें, बरगर, पीज्जा, मैगी, को जानते है लेकिन ठेठरी, खुरमी, अइरसा से अवगत नहीं है। छत्तीसगढ़ी व्यंजन सेहत बनाने में बहुत ही पौष्टिक आहार की भूमिका निभाते है। वहीं पर उपस्थित मेला घुमने आये गोपाल देवांगन ने संवाददाता को बताया की यहाॅ पर प्राप्त होने वाले छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का सेवन करने पर माॅ के द्वारा होली और दीवाली के समय बनायें जानें वाले छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की याद आ गई और इन व्यंजनों को जब हमने चखा तो हम अपने बचपन की यादों में चले गये क्योंकि आज की पीढ़ी इनके स्वाद तक को नहीं जानते मैं तो चाहूंगा की गढ़ कलेवा जैसा स्टाॅल जगह-जगह लगे जिससे हमारे आने वाली पीढ़ी हमारी छत्तीसगढ़ी व्यंजनों से परिचित हो जायें। कहीं ऐसा न हो की ठेठरी, खुरमी, अरसा संग्रहालय में ही देखने को मिले। इसलिये हमें अधिक से अधिक मात्र में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का उपयोग करना। चाहिए

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