कांकेर। ग्राम बेवरती निवासी त्रिलोचन साहू अब स्वावलंबी बन चुका है। वे स्वयं तो आत्मनिर्भर हो चुके हैं साथ ही तीन अन्य बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। सरकार द्वारा संचालित योजनाओं से उन्हें आत्मनिर्भर होने में बड़ी मदद मिली है। जिले के बेरोजगार युवक-युवतियों को स्वयं का रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासन द्वारा अनेक योजनाएॅ संचालित की जा रही है। जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र द्वारा संचालित प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत भी गरीब बेरोजगारों युवाओं को लोन दिया जाता है, जिससे वे अपना स्वरोजगार स्थापित कर सकें। इस योजना का मुख्य उद्देश्य शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन करना है।
विकासखण्ड कांकेर के ग्राम बेवरती निवासी त्रिलोचन साहू कक्षा 12 वीं तक पढ़ाई करके रोजगार की तलाश में भटक रहा था। मध्यम वर्गीय परिवार खेती का कार्य करके घर का गुजारा चलाता था। कृषि कार्य में ज्यादा मुनाफा न होने के कारण कम आमदनी से ही परिवार का गुजारा चलता था। त्रिलोचन ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के सपने संजो रखे थे और पढ़ाई के बाद रोजगार से जुड़ने का उसका यह फैसला अटल था। स्वावलम्बी बनने की इच्छा रखने वाले त्रिलोचन ने विद्युत रिपेयरिंग का कार्य सीखने के लिए पिछले 5 वर्षोंं से विभिन्न दुकानों में रिपेयरिंग का कार्य सीखकर ठेकेदारी का कार्य करने लगा, जिससे उसे थोड़ी बहुत मदद मिलने लगी, लेकिन वे इस कार्य से संतुष्ट नहीं थे। स्थाई रोजगार की तलाश में उन्हें पता चला कि जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र द्वारा संचालित प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत ऋण की सुविधा मिलती है, उन्होंने देर न करते हुए जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र कांकेर में संपर्क कर योजना की जानकारी प्राप्त किया और भारतीय स्टेट बैंक कांकेर से ऋण लेने हेतु आवेदन प्रस्तुत किया। संपूर्ण प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद उन्हें बैंक के माध्यम से 10 लाख रूपये का ऋण प्राप्त हुआ जिससे उन्होंने इलेक्ट्राॅनिक्स रिपेयरिंग एवं सर्विस सेंटर खोलकर स्वयं का रोजगार स्थापित किया। दुकान में वह घरेलू उपकरण, मोटर वाइंडिंग, घरेलू विद्युत व्यवस्था, विभिन्न प्रकार के विद्युत उपकरण के रिपेयरिंग के साथ-साथ ठेकेदारी का कार्य कर वह लगभग 30 हजार रूपये प्रतिमाह कमाता है, जिससे उनके जीवन में खुशहाली आई है और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है। त्रिलोचन की स्वावलम्बी बनने की इच्छा ने उसे नया रास्ता दिखाया और आर्थिक रूप से सशक्त होकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए उसके अन्दर आत्मविश्वास भी जगाया। उन्होंने अपने दुकान में 3 अन्य बेरोजगारों युवाओं को भी रोजगार उपलब्ध कराकर उन्हें संबल प्रदान किया है।