अत्यंत भाव विभोर वातावरण में राम कथा ने विराम लिया- रामायण सर्व मानव जाति का है किसी एक जाति संप्रदाय का नहीं-लाता महाराज

रायपुर। श्री महामाया देवी मंदिर सार्वजनिक न्यास समिति महामाया मंदिर वार्ड पुरानी बस्ती रायपुर के तत्वाधान में 2 दिसंबर से जारी श्रीराम कथा कल मंगलवार को विराम लिया। अत्यंत भाव विभोर एवं भावुक वातावरण में श्रद्धालुओं ने महाराज श्री को व्यास पीठ से विदा किया‌। कथा के प्रवचन कर्ता वाणी भूषण पं शंभू शरण लाटा ने कहा राम सत्ता के लिए नहीं, सत्य के लिए लड़ते हैं‌। जिसका साक्षात उदाहरण है कि प्रभु ने बाली को मारा, सुग्रीव को राज सिंहासन सौंप दिया। लंका में विजय प्राप्त किया, राजसत्ता विभीषण को सौंप दिया। प्रभु राम की दृष्टि जिस पर पड़ जाए दुश्मन भी दोस्त हो जाते हैं। विभीषण दुश्मन का भाई था लेकिन प्रभु की दृष्टि पढ़ने पर मित्र बन गया। सुग्रीव को भी प्रभु का आशीर्वाद मिला। राम-राम कहेंगे तो हनुमान जी की दृष्टि में सज्जन बन जाएंगे। हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंचे। एक वृक्ष के ऊपर बैठे हनुमान जी ने देखा सीता को रावण बहुत डरा रहा है। एक माह में मेरा कहना नहीं मानेगी तो तेरा सर काट दूंगा। रावण ने छत्तीसगढ़ की शक्तिपीठ मां चंद्रहासिनी के आशीर्वाद से प्राप्त चंद्रहास नामक तलवार निकाला था।

हनुमान जी ने सोचा प्रभु की आज्ञा नहीं है, नहीं तो इसी तलवार से रावण का सर काट देता। इस बीच मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। हनुमान जी पहले सोचे मैं ना होता तो क्या होता‌। फिर सोचा मैं ना होता तब भी प्रभु सीता की रक्षा मंदोदरी के माध्यम से करते। हनुमान की शंका दूर हो गई कि मैं ना भी हूं तो भी माता की रक्षा प्रभु कर लेंगे। धीरे से वृक्ष के ऊपर से हनुमान जी ने अंगूठी गिरा दिया। माता सीता समझ गई इस अंगूठी में छल कपट नहीं हो सकता और न ही प्रभु राम को कोई हरा सकता है‌‌। अस्तु अंगूठी तो प्रभु की ही है। लेकिन इसे लाया किसने है‌‌। हनुमान जी ने पूरी लंका जला दिया‌‌ केवल विभीषण का घर नहीं जला स्पष्ट है कि राम की भक्ति करने वालों को प्रभु स्वयं रक्षा करते हैं। जीवन में यदि डर खत्म हो गया तो विनाश अवश्य संभवहै। गुरु से माता-पिता से पति-पत्नी से डरना चाहिए‌। भय के संबंध में महाराज श्री ने बताया समुद्र सूख नहीं रही थी, तो भगवान राम ने भय दिखाया‌ तब पानी सुखा। नल नील पत्थर को समुद्र में फेंकते थे तो वह नहीं डूबता था। वे बाल जैसा पत्थर को कैच कर रहे थे। इनके हाथ से फेका पत्थर पानी में नहीं डूबता‌। प्रभु राम से जुड़ने से शक्ति बन जाती है। पत्थर जोड़ने से समुद्र पर पुल बन गया‌। आप भी जुड़ कर रहे टूटने से परिवार फूट जाता है। महाराज श्री ने भजन गाकर समझाया पानी में तर गए पत्थर,राम के नाम से, राम की नौका, राम ही खेवईया। इसलिए प्रभु के प्रति भक्ति होनी चाहिए‌। करपुर गौरम करुणावतारं का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि शिव कपूर जैसे गौर वर्ण है, करुणा के अवतार हैं, गले में सर्प धारण किए हुए हैं। त्रिनेत्र है और अंत में भवम भवानी अर्थात हमेशा मेरे हृदय में शिव पार्वती वास करें। यह इसका अर्थ है। शिवाष्टक का पाठ कम से कम सोमवार को करना चाहिए। भवसागर से पार करने का यह उपाय है‌‌। रामेश्वरम के संबंध में बताते हुए बताया कि हनुमान जी शिवलिंग लाने काशी गए थे। इस बीच आने मुहूर्त समाप्त न हो जाए इस कारण प्रभु ने बालू की शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की।हनुमान जी वापस आए क्रोधित होकर कहा मैं शिवलिंग लाने गया था, आप स्थापना कर दिए। प्रभु ने कहा बालू वाली शिवलिंग हटाकर आप लाएं है उस शिवलिंग को स्थापित कर दो। हनुमान जी ने अपनी पूरी पूंछ में बालू वाले शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं हटा। तब दूसरे शिवलिंग को भी स्थापित किया गया। आज भी रामेश्वरम में दो शिवलिंग है। जिनके मन में भगवान हो तो भेद नहीं होता है। मनुष्य को भेद नहीं करना चाहिए। खाने पीने की वस्तु में भेद नहीं होनी चाहिए। जब हनुमान जी लंका से लौटने में विलंब किया तो प्रभु राम दुखी होकर हनुमान को याद करने लगे। भावुक श्रोताओं को भजन गाकर आचार्य श्री ने प्रसन्न कर दिया। उन्होंने गया आ लौट के आजा मेरे हनुमान, बचा ले लक्ष्मण के प्राण, बचा ले राम के जान, हनुमान जी सीधे संजीवनी बूटी लेकर आए। जल्दी से लक्ष्मण जी को पिलाया। हनुमान की महिमा, हरि अनंत हरि कथा अनंता जैसा है। हनुमान जी ने युद्ध के दौरान हाथी से हाथी को, घोड़े से घोड़े को मारने लगे। अपनी पूंछ से अनेक राक्षसों को बांध लिया और पटक दिया। हनुमान जी की पूंछ व रावण की मूंछ का प्रश्न था। रावण 20 हाथ से हनुमान की पूछ को पकड़ लिया। हनुमान जी आकाश में उड़ गए। रावण पूछ पकड़े आकाश में उड़ने लगा। तब रावण चिंतित हो गया कि यदि मैं पूछ छोड़ा तो मेरी मृत्यु निश्चित है। इसलिए जो प्रभु भक्ति को पकड़ लिया तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए। छोड़ने से जीवन नष्ट हो जाता है। प्रभु राम ने एक बार में 31 बाण चलाएं। एक बाण रावण के नाभि में, 10 सर में तथा 20 भुजा में मारा। सर धड़ से अलग हो गया। रावण के ना समझना पर आचार्य श्री ने कहा जो आदमी के समझाने से नहीं समझता उसे वक्त समझा देता है। ज्ञान नहीं है तभी अभियान होगा। बंदरों को राम कहते हैं कि तुम्हारे बल पर ही मैं रावण को मारा। जहां श्रद्धा व भाव हो वहां बहस नहीं होती है। लौटते समय सीताराम ने रामेश्वरम में शिव जी का दर्शन किए। प्रभु राम लंका से लौटते समय जहां-जहां रुके सबको धन्य कर दिया तथा संकट के समय जिन लोगों ने साथ दिया उन सब का धन्यवाद ज्ञापित किया। पुष्पक विमान में निषाद राज को अपने साथ लेकर आए। समस्या का निदान आज्ञा से नहीं होता प्रेम से समाधान होता है। अपनी खुशी दूसरों में बाटे। महामाया मंदिर न्यास समिति के पदाधिकारी ने आचार्य श्री का शाल श्रीफल पुष्प हार से अभिनंदन किया‌ न्यास समिति के अध्यक्ष आनंद शर्मा एवं व्यवस्थापक पं विजय कुमार झा सहित सभी पदाधिकारी आचार्य श्री व उनके पूरी टीम तथा प्रतिदिन शांतिपूर्ण ढंग से धैर्यपूर्वक कथा सुनने वालों के साधुवाद ज्ञापित किया।

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