स्वामी ब्रह्मानन्द (सांसद)समाज सुधारक, स्वतंत्रता-सेनानी एवं राजनेता की जयंती पर आज लोधी समाज के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम वर्मा ने नमन किया।
श्री वर्मा ने उनके जीवनी से परिचय कराते हुए बताया कि स्वामी ब्रह्मानन्द का जन्म 04 दिसम्बर 1894 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले की राठ तहसील के बरहरा नामक गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मातादीन लोधी तथा माता का नाम जशोदाबाई था। स्वामी ब्रह्मानन्द के बचपन का नाम शिवदयाल था।
सत्याग्रह के समय तक इनके साथ सत्तर के दशक में 10-12 लाख लोगों का हुजूम जुट गया था, जिससे तत्कालीन सरकार घबरा गयी और फिर स्वामी ब्रह्मानन्द को गिरप्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया था। तब स्वामी ब्रह्मानंद ने प्रण लिया कि अगली बार चुनाव लड़कर ही संसद में आएंगे। जेल से मुक्त होकर स्वामी जी ने हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ से 1967 में चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर संसद भवन पहुंचे। वे भारत के पहले सन्यासी थे जो आजाद भारत में सांसद बने। स्वामी जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से सांसद रहे।
भारत की संसद में स्वामी ब्रह्मानंद जी पहले वक्ता थे जिन्होंंने गौवंश की रक्षा और गौवध का विरोध करते हुए संसद में करीब एक घंटे तक अपना ऐतहासिक भाषण दिया था। 1972 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आग्रह पर स्वामी जी कांग्रेस से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वी वी गिरि से स्वामी ब्रह्मानंद के काफी निकट संबंध थे।
स्वामी ब्रह्मानन्द की निजी संपत्ति नहीं थी। संन्यास ग्रहण करने के बाद उन्होंंने पैसा न छूने का प्रण लिया था और इस प्रण का पालन मरते दम तक किया। वे अपनी पेंशन छात्र-छात्राओं के हित में दान कर दिया करते थे। समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होने अपना जीवन अर्पित कर दिया। वह कहा करते थे मेरी निजी संपत्ति नहीं है, यह तो सब जनता की है।
हमेशा गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले, ‘बुन्देलखण्ड के मालवीय’ नाम से प्रख्यात, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, त्यागमूर्ति, सन्त प्रवर, स्वामी ब्रह्मानंद जी 13 सितम्बर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए।