भूमंडळीकरण के दौर में हिंदी को अंतरराष्ट्रीय रूप में स्वीकार किया जा रहा है ।खुद भारत में दूर दर्शन आदि संचार माध्यमों की वजह से हिंदी का बाजार लगातार समृद्ध होता जा रहा है,,, मलय रंजन खरे

मोहन लाल जैन शासकीय महाविद्यालय में हिंदी दिवस

आज दिनांक 14 सितंबर 24 को भिलाई स्थित खुर्सीपार के मोहन लाल जैन महाविद्यालय में हिंदी विभाग द्वारा हिंदी दिवस का आयोजन किया गया।

आयोजन में विषय विशेषज्ञ के रूप में आई.आई.टी.के प्रोफेसर मलय रंजन खरे ने कहा कि आज भूमंडळीकरण के दौर में हिंदी को अंतरराष्ट्रीय रूप में स्वीकार किया जा रहा है ।खुद भारत में दूर दर्शन आदि संचार माध्यमों की वजह से हिंदी का बाजार लगातार समृद्ध होता जा रहा है।ज्ञातव्य है कि प्रोफेसर मलय रंजन खरे हिंदी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार इंद्र बहादुर खरे के सुपुत्र हैं और विज्ञान के प्रोफेसर होने के बावजूद हिंदी के लिए पूरी तरह समर्पित और प्रतिष्ठित अध्येता हैं

विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी की विभागध्यक्ष डॉ. रोली यादव ने कहा कि मैँ यहां इस मंच से कदापि यह नहीं कहना चाहती हूं कि हिंदी दुनिया की कोई सर्वश्रष्ठ भाषा है।हमारे लिए हिंदी का वही महत्त्व है जैसे किसी द्रविण भाषी के लिए कन्नड़,तेलगू या मलयालम का महत्त्व है।भारत की दूसरी अन्य भाषा का सम्मान करके ही हम उसके मन में अपनी भाषा के प्रति सम्मान हासिल कर सकते हैं।कोई भी भाषा दुनिया भर में बोली जाने वाली भाषाओं से जुड़कर ही समृद्ध होती है।किसी भी भाषा की समृद्धि उसकी प्रसार संख्या के आधार पर तय होती है।

।एक सर्वेक्षण के आधार पर चीनी भाषा के बाद हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों के द्वारा बोली जाती है।सर्वेक्षण कर्ताओं ने बिहार की तीनों बोलियों -मैथिल,मगही और भोजपुरी को हिंदी के अंतर्गत नहीं माना था,तब भी हिंदी दूसरे नंबर पर थी।वरना प्रसार संख्या के आधार पर हिंदी नंबर 1 पर होती। जिस भाषा में रामचरित मानस लिखा गया, जिस भाषा में कामायनी लिखी गई उस तुलसी,जयशंकर प्रसाद,प्रेमचन्द की भाषा का साहित्य दुनिया में किसी भी भाषा के साहित्य से कमतर नहीं है।आज हिंदी दिवस पर हम उस साहित्य की गौरवशाली परंपरा से से जुड़कर अपने को भाग्यशाली समझते हैं।

कार्यक्रम का बहुत ही बेहतर संचालन हिंदी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अंजली ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षकों के साथ प्राचार्य डॉ. विनोद कुमार साहू की गरिमापूर्ण उपस्थिति ने आयोजन को भव्यता प्रदान की।कार्यक्रम के अंत में आगंतुक अतिथि ने भारी मात्रा में उपस्थित छात्रों के बीच अपने पिता और साहित्यकार इंद्र बहादुर खरे की पुस्तकों का निःशुल्क वितरण भी किया।

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