रुक्मणी विवाह में बाराती घराती दोनों झूमकर नाचे-वैवाहिक संस्कार परिवार को समृद्धि प्रदान करता है- पं मनोज शास्त्री

रायपुर। पुरानी बस्ती मैथिल पारा में खो-खो पारा स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर के पूर्व अध्यक्ष स्व एस के अग्रवाल अधिवक्ता के निवास में जारी श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन प्रवचन कर्ता ने रूक्मिणी विवाह की कथा का विस्तार से वर्णन किया। मंदिर समिति के अध्यक्ष पं विजय कुमार झा ने बताया है कि पुरानी बस्ती में चल रहे श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के छठवे दिवस में जगद्गुरू द्वाराचार्य मलुकपीठाधीश्वर श्वामि श्री डॉ राजेंद्र दास जी महाराज के चरणानुरागी शिष्य आचार्य प.मनोज कृष्ण शास्त्री (गुरुचरण दास) (श्री धाम वृंदावन) महराज जी ने कथा में भगवान श्री कृष्ण की माता रूक्मिणी से विवाह व उसके पूर्व गौरी पूजन का वृत्तांत बताते हुए कहा कि माता रूक्मिणी व पार्वती जी की बराबरी आज के युवाओं द्वारा किया जाता है। जबकि वे भगवान थे हम इंसान हैं हमारे जन्मदाता माता-पिता को विवाह संबंध करने व कन्यादान करने का अधिकार है शास्त्र व न्यायालय दोनों ही विवाह वह सप्तपदी तथा संस्कार को पूर्ण न करने पर उसे विवाह की मानता नहीं देते हैं वैवाहिक जीवन में सामाजिक व पूर्वजों की परंपरा के अनुकूल विवाह करने से परिवार में धन-धान्य संतान की प्राप्ति होकर समृद्धि की प्राप्ति होती है तथा घर संसार समाज परिवार में सम्मान प्राप्त होता है। आज रुक्मणी विवाह के पावन अवसर पर कथा मंडप, विवाह मंडप के रूप में दिव्यायमान था तथा बाराती घराती दोनों पक्ष एक साथ मंगल गीतों में झूमकर नाचने लगे। आज सोमवार को सुदामा चरित्र सहित अन्य कथाओं का वर्णन किया जावेगा।

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