प्रभु हमें देने में कभी कमी नहीं करते, लेकिन लेने में हम ही कमी कर जाते हैं-हरिशंकर वैष्णव

पाटन। बजरंग चौक सेलूद वार्ड 2  में जारी श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन भगवताचार्य पं. हरिशंकर वैष्णव ने भगवान के नाम महिमा का सुंदर वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महापुराण के 6वें स्कंध में परीक्षित ने शुकदेव से पूछा कि कलयुग में यह मनुष्य जो तरह-तरह के पापमय कर्मों को कर रहा है, जिसके कारण इनको मरने के बाद अनेक योनियों में भटकना पड़ता है, तो यह मनुष्य ऐसा कौन-सा उपाय करें, जिससे सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाए। तब शुकदेव स्वामी ने बताया कि इस कलयुग में एक बहुत ही सरल सुंदर साधन है, जिसे कर लेने से यह जीव समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। वह उपाय निरंतर भगवान का स्मरण करना, उनका नाम लेना है। अजामिल जैसे पापी ने भी भगवान का स्मरण कर अपना कल्याण किया था। 

सेलूद चौक में जारी कथा के दौरान भाव-विभोर होकर झूमते रहे श्रोता। मन रूपी दर्पण का साफ होना जरूरी है। प्रभु हमें देने में कभी कमी नहीं करते, लेकिन लेने में हम ही कमी कर जाते हैं। यदि हम साधना करें और भगवान की कृपा हो तो कुछ क्षणों के लिए दिव्यता प्राप्त होती है। आज लोग मंदिर जाते हैं और सिर्फ प्रार्थना करते हैं। सच्चे मन से पुकारने की देरी है, भगवान तत्काल प्रकट हो जाएंगे। भगवान को नारियल, फूल, फल, मेवा, पैसे नहीं, वे तो प्रेम के भूखे हैं। हम तो ये सब चीजें अर्पित कर देते हैं, लेकिन प्रेम अर्पित नहीं कर पाते। जीवन में विवेक को सदा साथ रखना चाहिए। मनुष्य को अपना चेहरा देखने के लिए जिस तरह दर्पण की जरूरत होती है, उसी तरह आत्मा को देखने मन रूपी दर्पण की जरूरत होती है। भक्ति में ही वह शक्ति है, जो प्रभु को अवतार लेने मजबूर कर देती है। शनिवार को पंडित जी द्वारा समुद्र मंथन, वामन अवतार की कथा सुनाई जाएगी।

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