*छुरा*@@@ 13 वें ज्योतिर्लिंग धाम महाऔघड़ेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाऔघड़ेश्वर ज्योतिर्लिंग धाम अघोरमठ,ग्राम बिहावझोला मड़ेली विकास खण्ड छुरा, जिला गरियाबंद महाकौशल क्षेत्र छत्तीसगढ़ में एकमात्र व विश्व का वह विशिष्ट महाऊर्जामय स्थान है जहां विगत अनेक वर्षों से अनवरत लगातार अग्निहोत्र व यज्ञ, अनुष्ठान हो रहा है। श्री धाम में 24 मार्च 2024 फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा दिन शनिवार को रात्रि में पलास फूल की रंग से विश्व के 13 वें ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया गया, तत्पचात बाबाजी का श्रृंगार दर्शन, पूजा अर्चना, जप, भोग, आरती , हवन के बाद प्रसाद एवं भोजन प्रसादी बांटी गई। प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र अघोरपीठ अघोरेश्वर धाम बिहावझोला मड़ेली में महाऔघड़ेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान भगवान शिव 13 वें ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है। यहां मांगी जाने वाली सभी मनोकामनाएं भगवान भोलेनाथ पूरी करते है। यह कार्यक्रम अघोर पीठ, अघोरनाथ जी के आशिर्वाद, मार्गदर्शन से अघोरपीठाधीश गुरुदेव बाबा श्री रुद्रानंद प्रचंडवेग नाथ जी की कृपा से सम्पन्न हुआ।*होली का त्योहार :-* सनातन संस्कृति में बहुत से त्योहारों की व्यवस्था की गई है, ये सारे त्योहार वास्तव में प्रतीकात्मक हैं, इन्ही में एक महत्वपूर्ण त्योहार है *”होली”*।होली के त्योहार को समस्त त्योहारों का राजा माना गया है, क्योंकि सारे त्योहारों की व्यवस्था मनुष्य जाति के लिए की गई है, और होली का त्योहार एक मनुष्य के चरम अवस्था का प्रतीकात्मक त्योहार है। होली के त्यौहार में सर्वप्रथम अग्नि की आराधना की जाती है वह भी रात्रिकाल में, यहां रात्रिकाल जीवन मे अज्ञानता का धोतक है व अग्नि चैतन्य अर्थात जीवंत जागृत सामर्थ्य (शक्ति) का प्रतीक है।होली के त्यौहार में जिस तरह व्यक्ति रात्रि प्रहर में अग्नि की आराधना करने के उपरांत दिन के उजाले में आपसी द्वेषभाव से परे होकर सभी गले मिलते हैं, व किसी अच्छे सुशोभित वस्त्र का ध्यान नही रखा जाता तथा जिसके द्वारा भी जैसा भी रंग लगाया जाए उसे खुशी-खुशी स्वीकार किया जाता है व जहां भी जाते हैं वहां जो भी भोज्य पदार्थ परोसा जाता है उसे खुशी से ग्रहण करते हैं तथा ढोल नगाड़ो के धुन में मस्त हो कर झूमते हैं।उसी प्रकार एक मनुष्य साधक जब तक पूर्ण जागृति को प्राप्त नही हुआ होता वह परम चैतन्य (जागृत) परम् सामर्थ्य (शक्ति) की आराधना करता रहता है, तदुपरांत उसके जीवन मे ईश्वरीय जागृति व सामर्थ्य घटित होती है और वह व्यक्ति अपने परम अवस्था को अपने परिपूर्णता को प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति किसी विशेष चोले का आग्रह नही रखते, भिन्न-भिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न गुणों से युक्त उनके संसर्ग में आते हैं और अपने उन गुणों अर्थात स्वभाव अनुसार उस परम अवस्था प्राप्त व्यक्ति के सांथ व्यवहार करते हैं, (भिन्न-भिन्न गुण व स्वभाव भिन्न-भिन्न रंगों का धोतक है)और परम अवस्था को प्राप्त व्यक्ति सभी को समदर्शिता के सांथ स्वीकार कर लेते हैं।परम अवस्था को प्राप्त व्यक्ति राग व द्वेष से परे *वीतरागी* होते हैं, अर्थात वे किसी से भी द्वेष व बैर भाव से परे होकर व्यवहार करते है।परम् अवस्था को प्राप्त व्यक्ति भाव को ही महत्व प्रदान करते हैं, जो भी उन्हें भावपूर्णता के सांथ जो परोसते हैं वे बिना किसी विशिष्ट मांग के उसे स्वीकार कर ग्रहण कर लेते हैं।परम अवस्था को प्राप्त व्यक्ति अनहद नाद को ध्यान कर अपने आंतरिक आनंद (मौज) की मस्ती में अंतरतम से झूमते रहते हैं। वे बाहरी शोरगुल से अप्रभावित अंतरतम से पूर्णतः शांत सम्पूर्ण ईश्वरीयता में निमग्न होते हैं, व समस्त के परिपूर्णता के भाव को धारण किये होते हैं।चूंकि समस्त त्यौहारों की व्यवस्था मनुष्य जाति के लिए ही की गई है, और होली त्योहार मनुष्य जाति के परम अवस्था का प्रतीक है इसीलिए इस त्योहार को समस्त त्यौहारों का राजा माना गया है।एवम इस त्योहार की व्यवस्था इसलिए कि गयी है ताकि प्रतिवर्ष इस त्यौहार के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति अपने परम लक्ष्य जो की उसकी परिपूर्णता है, का बोध बना रहे। इस त्यौहार के दिन प्रत्येक व्यक्ति जिनसे भी भेंट हो यह शुभकामना देना चाहिए *”नाथजी (ईश्वर) की कृपा बनी रहे, आप अपने परम अवस्था को प्राप्त हों।”* व जिन्हें भी यह शुभकामना दी जाए बदले में उनके द्वारा भी *”नाथजी (ईश्वर) की कृपा बनी रहे, आप भी अपने परम अवस्था को प्राप्त हों।”* की शुभकामना दी जानी चाहिए।अघोर पन्थ के महागुरु बाबा श्री औघड़नाथजी के द्वारा स्थापित व्यवस्था *”सिमरान”* समाज के प्रत्येक सदस्य इसी शुभकामना के होली के त्यौहार को मनाते हैं।