डॉ शालिनी यादव की एक अलग से कविता,,किनारे से मिलने तरसती ,,,कश्ती

कश्ती डूब गई
 
किनारे के दर्शन
कभी तो मिलेंगें
इस इंतजार में
भटकती रही
तार्किक विचारों के
भंवर में घिरी
एक कश्ती…
भटकते हुए
जब दूर कही
आभास हुआ
एक टापू का
स्वप्न तैरने लगे
किनारे से मिलन के
कश्ती की आंखों में
चप्पू चलाते हुए
तेजी से
लहरों के बहाव के साथ
अथाह समुद्र के
आगोश में
तुफानी लहरों के बीच
किनारे से मिलन को
तरसती
भटकती
कश्ती
लिखकर देती
प्रेम पाती
किनारे की तरफ
बढती
हर छोटी बड़ी लहर को
किनारे तक पहुंचाने के लिए
दिल की बात…
जब वो बहती जा रही थी
उस झंझावत में
सोचते हुए
क्या किनारा भी
कर रहा होगा उसका इंतजार?
एक लहर आई
किनारे की खबर लेकर
धीरे से कहा उसने
कश्ती के कान में
खत लिखना
किनारे को
अब बंद कर दो
किनारा बिल्कुल बदल गया हैं
वहाँ अब बड़े बड़े जहाज
और बहुत चहल पहल हैं
कुछ नई कश्तियाँ बहुत करीब
उसने दिल में बसाई हैं
और छोटी बड़ी कई कश्तियां
सीने पर उसके खेलने लगी हैं
वो भूल गया हैं
व्यापार की बढ़ती
व्यस्तता में
उस कश्ती को
जो लाती थी प्रेम स्वरूप
कुछ मोती चुनकर संग
उससे मिलने को
और भी बहुत कुछ कहती रही
वो लहर
किनारे के फैलते
कारोबार के बारे में
पर कश्ती तब तक
डूब चुकी थी
उस भँवर में
जिसका सामना कर
जाना चाहती थी वो
देने अपने किनारे को
कुछ विशेष मोती
भेंट में…

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