वेश्यावृत्ति भी एक काम है, ये कोई अपराध नहीं, सेक्स वर्कर्स को परेशान न करे पुलिस: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने देश की सेक्स वर्कर्स को लेकर कई बड़ी बातें कही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्क (वेश्यावृत्ति) भी एक पेशा है, काम है, इसलिए इस काम से जुड़ीं महिलाओं से अच्छा बर्ताव किया जाना चाहिए. सेक्स वर्कर्स को भी सम्मान पाने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस सेक्स वर्कर्स को बेवजह परेशान न करे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस किसी वजह से सेक्स वर्कर्स के घर छापेमारी कर रही है तो सेक्स वर्कर्स को परेशान न करे और न ही उन्हें अरेस्ट करे. अपनी मर्जी से वेश्यावृत्ति करना अवैध नहीं है. सिर्फ वेश्यालय चलाना गैर कानूनी और अवैध है. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने इसे लेकर कई और अहम निर्देश जारी किए. कोर्ट ने कहा कि पुलिस सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप न करे. अगर कोई महिला बालिग है और अपनी मर्जी से इस काम में लगी हुई है तो ऐसी महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. पुलिस को सेक्स वर्कर्स के साथ हिंसा नहीं करनी चाहिए या उन्हें किसी भी यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए.’’
पीठ ने कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़ित किसी भी यौनकर्मी को कानून के अनुसार तत्काल चिकित्सा सहायता सहित यौन उत्पीड़न की पीड़िता को उपलब्ध सभी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए. इस देश में सभी व्यक्तियों को जो संवैधानिक संरक्षण प्राप्त हैं, उसे उन अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाए जो अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के तहत कर्तव्य निभाते हैं.
पीठ ने कहा, ‘‘यह देखा गया है कि यौनकर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है. ऐसा लगता है कि वे एक वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है. पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यौनकर्मियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए जिन्हें सभी नागरिकों को संविधान में प्रदत्त सभी बुनियादी मानवाधिकार और अन्य अधिकार प्राप्त हैं.
अदालत ने यह भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद से मीडिया के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया जाना चाहिए ताकि गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान उजागर न हो, चाहे वे पीड़ित हों या आरोपी हों और ऐसी किसी भी तस्वीर का प्रसारण या प्रकाशन नहीं हो जिसके परिणामस्वरूप उनकी पहचान का खुलासा हो.
शीर्ष अदालत ने यौनकर्मियों के पुनर्वास के लिए गठित एक समिति की सिफारिशों पर यह निर्देश दिया. शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण यौनकर्मियों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं को उठाया गया था.

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