कला,संस्कृति, अपनी माटी की सांस्कृतिक धरोहर को कलम से पिरोते ग्रामीण अंचल की बालक , गांव के बच्चे की प्रतिभा सामने आया लॉकडाउन में

पाटन। ब्लाक के गांव रानीतराई निवासी प्रहलाद साहू के बड़े सुपुत्र समीर कुमार साहू वर्तमान में उतई इंद्रानगर निवासी ने बहुत कम उम्र 14 साल से ही अपनी प्रतिभा के बल पर गायन ,गीतकारी ,कविता ,के रूप में कला को उभारने का प्रयास करते आ रहा है लेकिन पढ़ाई के साथ साथ इन रुचि को लोगों तक लाने का प्रयास नहीं कर पा रहे थे लेकिन विगत कई महीनों से कोरोना काल की कारण लॉक डाउन की स्थिति में घर में ही रहने का समय मिला जिसमें उन्होंने अपनी प्रतिभा कविता लेखन के रूप में अनेकों अच्छा कविता लिखकर छत्तीसगढ़ की संस्कृति सहित वर्तमान स्थिति के बारे में लिखकर अपनी भावनाओं को प्रकट किया और कई विषयों पर भी कविता लेखन किया है इस छोटे से उम्र में इसकी प्रतिभा का अगर अच्छा मार्गदर्शन और अच्छा मुकाम मिल जाए तो यह खुलकर अपने मन की स्थिति विचार संस्कृति सभ्यता प्रदेश देश के बारे में सरल रूप में लेखन को और आगे जारी रख सकता है

दसवीं के छात्र समीर कुमार ने बताया कि उसे बचपन से कला के प्रति लगाव रहा लेकिन समय अभाव में नही कर पा रहा था लेकिन अभी लॉकडाउन में घर में रहते समय मिला तो अच्छा सा लिपिबद्ध किया है बताया की वे मानस मंडली और जसगीत मंडली में भी जाकर संगीत और वादन करता हु । मुझे मेरे नाना लक्ष्मण प्रसाद साहू जी सेवानिवृत्त शिक्षक का पूरा मार्गदर्शन मिलता है । मै आगे और अच्छी अच्छी कविताएं लिखूंगा ,हमारी छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती संस्कृतियों परम्पराओ के साथ सामाजिक कुरीतियों को भी अपने लेखन से समाज के सामने लाऊंगा ।

समीर ने “गांव के सुरता “नाम से एक छोटी रचना किए हैं जिसने __
“गांव के सुरता”

कहां गवांगे कहां गवांगे ।
मां के चूल्हा के अंगाकर रोटी l
बाबू के ददरिया गवई ।
डोकरी दाई के जनउला
कहां गवांगे ।

तरिया के नहवईय ।
अमरईया छांव म बईठईया।
जाता म पिस‌ईया ।
ढेकी के कुटाईया ।
कहां गवागे ।

खुमरी के पहनाईया ।
बंसी के बज‌ईया
ग‌ईया के चर‌ईया ।
घुंघरू के पहन‌ईया ।
कहां गवांगे ।

डोंगरी पहाड़ की घुम‌ईया ।
खपरा के लहुठ‌ईया । भुइयां मां सुत‌ईया
नांगर मा जूत‌ईया ।
कहां गवांगे ।

गेड़ी के रेंगईया।
ब‌ईला गाड़ी के चल‌ईयाया ।
ब्यारा म खेल‌ईया ।
सुरता कर‌ईया घलो ।
कहां गवांगे कहां गवांगे ।।

यह समीर की छोटी सी रचना है समीर चंद्र साहू ने और अनेकों रचना की है जिसमें कोरोना के विषय में भी लेख लिख वर्तमान समय के बाते में बताया है …

ऐ दे का समय आ गए जी। करोना के दर मां ।
मां के बने खाना ला नई गावत हे ।
सग्गे बेटा हां परिवार से दुरिहा भागत हे ।
संगवारी मन संगवारी ला खेदारत हे ।
भेटाएं मां मुहू लुकावत हे ।
खावा‌ए म मुहू लुकावत हे । जहुरिहा हा ‌‌जहुरिया ला भुलागे ।
पातर पातर कनिहा वाली मन भोगागे ।
मास्क सेनीटाइजर दो गज की दूरी ला संगी बना के । दुनिया ला भूलागे ।
सग्गे मनखे तीर मा बेटा ला न‌ई ब‌ईठारत हे ।
जहुरिया हा ‌‌जहुरिया ला भुलागे जी ।
ए दे का समय आ गे जी ।।।

इस कविता में छत्तीसगढ़ के संस्कृति ,धरोहर की वर्तमान परिवेश में बताया है।

भुलागे संगी भुलागे अपन धरोहर ला भुलागे ।
सुवा ,करमा, ददरिया, राउत ल भुलागे ।।
कमरा, खुमरी ,धोती के पहन‌ईया।
कति कती के जींस टॉप म आगे ।।
गाड़ा ब‌ईला मां घुम‌ईया । मोटर साइकिल म आगे ।।
अब्बड़ सुरता आथे संगी।
बाटी भावरा गिल्ली डंडा के खेलाया ।।
कति कति के फिरि फायर के खेल‌ईया आगे ।
भुलागे संगी भुलागे अपन धरोहर ल भुलागे ।।

   

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