दैनिक वेतनभोगियों का कारनामा फर्जी दस्तखत कर निकले पैसे विभाग का रवैया सुस्त

लोकेश्वर सिन्हा
गरियाबंद में उदन्ती सीता नदी टाइगर रिजर्व हमेशा ही विवादों और सुर्खियों में रहा है। इस बार फर्जी चेक आहरण के मामले में विभाग की प्रशासनिक कार्यशैली ही सन्देश के दायरे में है। विभाग में रेगुलर कर्मचारी हासिये में है और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी चेक से लेकर वित्तीय मामलों की फाइलों में कुंडली मारकर  बैठे हैं जिसका नतीजा ही कहा जाए की इन कर्मचारियों के हौसले बुलंद है यह अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर कर बैंक से रुपये आहरण कर रहे हैं बात यहीं खत्म होती तो बात और थी ये दैनिक वेतन कर्मचारी तो अपने सहित अपने सहयोगियों के रिश्तेदारों के खाते में भी पैसे इसी खाते से आरटीजीएस कर ट्रांसफर किए इस मामले को अगर ईमानदारी से मंथन किया गया तो विभाग का सारा विष बाहर निकल आयेगा। पुख्ता जानकारी के अनुसार यह करेंट अकाउंट जिसपर अधिकरियों के फर्जी हत्ताक्षर किये गए यह उप निदेशक उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व के खाता क्रमांक 33735076991 है जिसमे से 6 लाख 50 हजार रुपए का आहरण 30 से अधिक चेक द्वारा किया गया है। जांच सही होने पर यह राशि और भी बढ़ सकती है। जिसकी सूचना विभाग को तीन वर्षों तक नही हुई। इस दौरान दो अधिकारी बदल गए। तीसरे अधिकारी का भी फर्जी हस्ताक्षर चेक बुक में किया गया है। जानकारी के अनुसार इस मामले में केवल एक व्यक्ति के ऊपर दोषारोपण कर मामले को दबाने का भरकस प्रयास किया जा रहा है। किन्तु यह भी जानना जरुरी है कि आखिर यह चेक बुक किसके आस थी। इनमे किसकी द्वारा लेख किया गया। फर्जी हत्ताक्षर किसने व किसके कहने पर किया। विभागिय जांच के लिए किस अधिकारी को नियुक्त किया गया है जैसे अनेक सवाल विभाग के कार्यशैली पर है ?  जानकारी के अनुसार विभाग के एक कर्मचारी को बैंक व ट्रेजरी सम्बन्धी मामलों को लेकर कार्य आदेश किया गया था। जिनके खाते में भी फर्जी चेक से रुपए ट्रांसफर किये गए है। किन्तु वह भी सारा चेक दैनिक वेतन भोगी के हवाले कर दूसरा प्रभार देख रहा है। फर्जी चेक 2018 से लेकर आज पर्यंत तक यह बदस्तूर जारी है। विभाग में इस सम्बंध में चार्ज लिस्ट भी विभाग से गायब है। जबकि लेखा की जांच शिर्ष अधिकारी द्वारा हर माह किया जाना होता है। रुपए किस कार्य आदेश पर किस बिल बाउचर के विरुद्ध निकाला गया है इसका कोई आता पता नही है। जो प्रथम दृष्टया ही जांच की मांग करता है। ताज्जुब तो यह है कि आहरण अधिकारी को खुद सज्ञान में आते ही इसकी सूचना पुलिस को देकर इसकी जांच करवाकर एफ आई आर दर्ज कराना चाहिये था। किन्तु विभाग के सलिप्त कर्मचारी ही जांच में जुटा दिए गये। सरकार के रुपयो का फर्जी हस्ताक्षर से आहरण किया गया, किसी को फर्क नही पड़ता ? अधिकारी निश्चित है, जांच में इतनी देर होना मामले की प्रासगिकता को कम करता है। मामले को लेकर कटघरे में स्टेट बैंक कर्मचारियों की भी मिली भगत से इंकार नही किया जा सकता। बैंक सरकारी आहरण को लेकर भी गम्भीर नही है व सरकारी मापदण्डो का खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। इन अधिकारियों के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों पर महेरबानी की वजह भी ऐसे भ्रटाचार को बढ़ावा देता है। विभाग अफसरों के कारगुजारियों पर पर्दा डालने व भ्रटाचार उजागर होने पर इन्हें आसानी से बलि का बकरा बनाने के लिये ही इन्हें जिम्मेदारी वाले पदों पर बिठा कर कार्य करा रहे है। 
इस मामले में उप निदेशक उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व से जानकारी लेने पर जांच होने की बात कह कर देरी को लेकर कहा कि कागजात के रूप में सुबूत उपलब्ध है देर होने से कुछ नही होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *