किसानों को गणतंत्र दिवस के पहले ही उनके चाहे हुए स्थान पर अनुमति दे दी जाती तो शायद यह माजरा नहीं हुआ होता

पाटन।गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली ने हिंसक रूप धारण कर लिया एवं कुछ लोग लाल किले पर चढ़कर अपने संगठन का झंडा फहराया, यह अपने आप में बड़ा प्रश्न हैI
इस प्रश्न के उत्तर जानने के लिए जाना होगा यहां विगत 2 महीने से दिल्ली के सीमाओं पर किसान इन कृषि बिलों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जिसमें युवा युवती बच्चे महिला पुरुष यानी सभी वर्ग के लोग हैI
आखिर यह भारत सरकार से क्या मांग रहे हैं सिर्फ तीन कृषि बिल वापस हो? किसान लगातार मांग कर रहे थे कि हमें रामलीला मैदान मैं आने दीजिए सभी सीमाओं को खोला जाए पर सरकार ने उनकी बात नहीं मानी आखिर जो हुआ, नहीं होना थाI किसानों के बीच में कुछ असामाजिक तत्वों ने घुसकर किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश किया जिससे किसान बदनाम हो जाए आंदोलन टूट जाए और किसान अपने अपने घर चला जाएI केंद्र सरकार की नाकामी दिखाई दे रही है यदि किसानों को गणतंत्र दिवस के पहले ही उनके चाहे हुए स्थान पर अनुमति दे दी जाती तो शायद यह माजरा नहीं हुआ होता I सुरक्षा की सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है अब सारा दोष किसानों पर मढ़ रहे हैंI भाजपा के नजर में किसान अब देशद्रोही अपराधी हो गए हैं?
विगत 2 महीने से दिल्ली के सीमाओं पर रह कर किसानों ने किसी प्रकार का उपद्रव या शासकीय संपत्ति को कोई नुकसान नहीं किया आंदोलन शांतिपूर्ण चल रहा था फिर अचानक यह सब कैसा हुआ ? कहीं यह कोई चालाकी या षड्यंत्र तो नहीं ?मोदी जी क्या हुआ तेरा वादा, देश झुकने नहीं दूंगा, देश बिकने नहीं दूंगा देश टूटने नहीं दूंगा ?
हिंदुस्तान के इतिहास में किसानों का यह आंदोलन भी याद रहेगा देश को याद रहेगा भारतीय गणतंत्र के दिन देश के अन्नदाता किसानों पर लाठियां भांजी गई एवं बदनाम करने की साजिश की गईI दिन रात मेहनत कर किसान देश के लोगों के लिए अनाज उगाता है, सर्दी गर्मी बरसात की परवाह न करते हुए लोगों के पेट भरने के लिए अनाज उगाता है I देश और दुनिया देख रही है? क्या यही है अच्छे दिन ?

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