सत्य कर्म स्वर्ग में और असत्य कर्म नर्क में प्रवेश कराता है-रेणुका गोस्वामी

पाटन। ग्राम छाटा में आयोजित संगीतमय श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ कथा के तीसरा दिन प्रह्लाद चरित्र, अजामल कथा, वाराह अवतार की कथा सुनाई गई। कथा वाचिक रेणुका दीदी गोस्वामी ने धर्म,अर्थ, कर्म व मोक्ष की महत्ता पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सत्य और असत्य कर्म है असत्य कर्म से पतन होता है और नरक की तरफ व्यक्ति जाता है और सत्य से स्वर्ग में प्रवेश करता है जहां सुख शांति मिलती है । उन्होंने प्रहलाद चरित्र में भक्ति की प्रधानता ईश्वर सिद्धि के रूप में बताते हुए कहा कि राजा हिरणाकश्यप खुद को भगवान समझता था। प्रजा को भी वह उन्हें भगवान मानने के लिए दबाव डालता था।

लेकिन हिरणाकश्यप का पुत्र प्रहलाद विष्णु को ही भगवान मानता था। प्रहलाद के इस भक्ति भाव से हिरणाकश्यप नाराज था। एक दिन हिरणाकश्यप ने प्रहलाद से पूछा कि तुम्हारा भगवान विष्णु कहां रहता है। प्रहलाद ने एक खंभे की ओर इशारा करके कहा कि मेरा भगवान हर जगह है। आक्रोश में आकर हिरणाकश्यप ने उस खंभे को तोड़ने का प्रयास किया। इसके बाद खंभे से भगवान श्री विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने हिरणाकश्यप का वध किया।

ईश्वर तो कण-कण में हैं। लेकिन वह दिखाई नहीं देते हैं। उद्धारण के तौर पर पानी में नमक घोलते हैं तो दिखाई नहीं देता है। लेकिन चखने पर प्रतीत होता है। उसी प्रकार परमात्मा कण-कण में व्याप्त हैं। परमात्मा को तो केवल भक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने नवरात्रि के समय में कन्याओं के पूजन व कन्याओं की रक्षा करने का संदेश देते हुए कहा कि सनातन धर्म में कन्याओं की पूजा की जाती है। इसलिए कन्याओं की रक्षा करने के साथ उन्हें शिक्षित करें जिससे समाज और देश प्रगति पर चले। कथा के दौरान श्रद्धालुओं को धार्मिक भजनों पर नृत्य करते व जयकारे लगाते हुए भी देखा गया। कथा का वाचन करते हुए पंडित जी ने कहा कि, भागवत कथा सुनना और भगवान को अपने मन में बसाने से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है। भगवान हमेशा आपने भक्त को पाना चाहता है। जितना भक्त भगवान के बिना अधूरा है उतना ही अधूरा भगवान भी भक्त के बिना है। भगवान ज्ञानी को नही अपितु भक्त को दर्शन देते हैं। और सच्चे मन से ही भगवान प्राप्त होता है। भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानते थे। पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति करते देख उन्होंने उसे ही जान से मारने की ठान ली। प्रभु पर सच्ची निष्ठा और आस्था की वजह से हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का कुछ भी अनिष्ट नहीं कर पाए। वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह शिक्षा दी कि दंभ तथा अंहकार से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता और यह भी बताया कि यह धनसंपदा क्षणभंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों। उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी। कथा के दौरान वामन अवतार की झांकी दिखाई गई और तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर दे रे झोली पर श्रद्घालु भाव विभोर हो उठे। कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में महिला- पुरूष पहुंचे। इस असवर पर गिरधर बघेल, श्रीमती शैल बघेल, बलराम यादव, लालजी साहू, भरत वर्मा, शिव नारायण कामडिया, बुधू साहू, लुप्ती साहू, सुशीला यादव, सहित हिरेंद्र वर्मा, दीप्ति वर्मा, श्रीमती विद्या वर्मा, अभिनेष वर्मा, श्रीमती वंदना भूपेंद्र वर्मा , श्रीमती रीना अशीष देशमुख ,जयप्रकाश बघेल रवि प्रकाश बघेल सहित श्रीमती मीना वर्मा ,श्रीमती रामेश्वरी पंथ राम वर्मा , श्रीमती उमा वर्मा , सतानंद वर्मा, अंशुमन ,आस्क, यशिका ,श्रीजी एवं ग्रामवासी मौजूद थे।

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