महिलाओ ने संतान की लंबी उम्र के लिए कमरछठ (हलषष्ठी) त्योहार देऊरझाल में मनाया गया

पाटन। छत्तीसगढ़ में भादो ( भाद्रपद ) के कृष्ण पक्ष में षष्ठी (छठवे दिन) को कमरछठ तिहार मनाया जाता है। यह प्रमुख त्योहारों में से एक है। कमरछठ को हलषष्ठी भी कहा जाता है।
इसी कड़ी में पाटन ब्लाक के ग्राम देऊरझाल में कला मंच के सामने सभी महिलाओ ने एक साथ एकत्र होकर सगरी पसहर चावल , बेल पत्ती सहित छ: प्रकार के पूजा के समान में उपयोग होने सामग्री की पूजा गया।

क्यों मानते है ?

यह त्योहारों ( तिहार ) महिलाओ के द्वारा संतान की लंबी उम्र के लिए मानते है।

हलषष्ठी नाम क्यो पड़ा ?

इस दिन बलराम का जन्‍म हुआ था, इस पर्व को बलराम के जन्‍म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। चूँकि बलराम का आयुध हल है, इसी आयुध के नाम पर बलराम का जन्‍म दिन हलषष्‍ठी के रूप में मनाया जाता है। हल कृषको का मुख्‍य औजार होता है इसलिये इस त्योहार को कृषको के सम्‍मान के पर्व के रूप में भी जाना जाता है।

कैसे मनाया जाता है ?

इस दिन महिलाएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। महिलाएं एकत्रित हो कर दो सगरी(छोटा तालाब) के साथ मिट्टी की नाव बनाती है, और फूल-पत्तों से सगरी को सजाकर वहां महादेव व पार्वती की पूजा करती है। हलषष्ठी माता की छः कहानियां सुनाई जाती है।

विशेष भोजन एवं विधि :

इस दिन विशेष भोजन पारंपरिक रूप से पत्तल में किया जाता है। पतरी (पत्तल) के लिए विशेष रूप से महुआ के पत्तो का इस्तेमाल किया जाता है। पुराने समय मे खाना बनाने के लिए महुआ की लकड़ी एवं महुआ की लकड़ी से बनी करछुल ( खाना बनाने का चम्मच ) का इस्तेमाल हुआ करता था, परंतु वर्तमान समय में उपलब्धता ना होने की वजह से केवल महुआ के पत्तल और दोने का इस्तेमाल होता है।

इस दिन बनने वाले भोजन के लिए भी विशेष नियम है। भोजन के लिए इस्तेमाल होने वाले सामग्री को ऐसे स्थान से होना चाहिए जहां हल ना चला हो।

इस दिन पसहर चावल पकाया जाता है। भैंस का दूध और भैंस के दूध से ही बने घी एवं दही का इस्तेमाल किया जाता है। मुनगा के भाजी ( मुनगा के पत्ते ) के साथ छः अलग-अलग भाजी को मिलाया जाता है।

पोतनी :

पूजा विधि के पूर्ण होने के बाद महिलाएं संतान बाएं (डेरी) कंधे पर कपड़े के टुकड़े से छुही के पानी को आशीर्वाद स्वरूप छः बार लगाया गया। इस अवसर पर सभी महिलाओ को छ: अध्याय की पाठ चंद्रवती कुर्रे के द्वारा कथा सुनाई गई। मौके पर कलिंद्री कुर्रे , गायत्री जांगड़े , दुर्गा बारले , सरोज बारले , साधना साहू , आशा कुर्रे , अलका जांगड़े , कमलेश्वरी कोठरी , मंजू डहरिया, रेशम कुर्रे , रेशम कुर्रे , बबली जांगड़े , चंदन बंजारे , तुलसी कोसरे, अहेलमति बारले , लिकेश्वरी डहरिया , उत्तरा जांगड़े सहित अन्य ग्रामीण महिलाएं उपस्थित थे।

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