रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पूर्व अविभाजित मध्य प्रदेश में कर्मचारियों की जायज मांगों के लिए न केवल चुनाव की घोषणा, अपितु मतदान के पूर्व, मतदान सामग्री ले जाते समय भी सरकार द्वारा जायज मांगों की उपेक्षा किए जाने पर आंदोलन करने का इतिहास जगजाहिर है। भारत निर्वाचन आयोग के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी टी एन सेशन, द्वारा आदर्श आचार संहिता के कड़ाई से पालन के बाद चुनाव के दौरान आंदोलन बंद हो गया। किंतु कर्मचारियों में मानसिक रूप से अपनी उपेक्षा, मांगों की उपेक्षा से नाराजगी है। कर्मचारी नेता विजय कुमार झा ने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा 4% और महंगाई भत्ता घोषित होने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य के शासकीय सेवक 1 जुलाई 2023 का 4% तथा 1 जनवरी 2024 का 4% कुल 8% महंगाई भत्ता से पीछे है। क्या केंद्र और राज्य के कर्मचारियों में मोदी की गारंटी भेदभाव करता है। मोदी के गारंटी 100 दिनों में जायज मांगों को पूरी करने की है। तब क्या पूर्ववर्ती श्री भूपेश बघेल सरकार की भांति 10 दिन में निमित्तिकरण करने का वादा करने वाली सरकार 5 साल में अनियमित कर्मचारी, स्कूल सफाई कर्मचारी, मध्यान भोजन, रसोईया कर्मचारी, आंगनबाड़ी, कोटवार व संविदा कर्मचारियों, अनुकंपा नियुक्ति हेतु विधवा महतारियों को उनका हक प्रदान नहीं किया। ऐसे ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार 100 दिनों में अर्थात कांग्रेस से 10 गुना ज्यादा समय कर्मचारियों की मांगों के लिए लेना चाहती है। यदि ऐसा होगा तो आदर्श आचार संहिता का डंडा केवल शासकीय कर्मचारियों के लिए नहीं चलना चाहिए, अपितु प्रत्यक्ष रूप से न सही, किंतु प्रदेश का कर्मचारी लोकसभा चुनाव 2024 का मानसिक रूप से बहिष्कार करेगा।