**लोकेश्वर सिन्हा राजिम/गरियाबंद* राजिम माघी पुन्नी मेला का मंच की अपनी अलग गरिमा है। यह एक राष्ट्रीय मंच है, इसे पूरा विश्व देखता हैं। उक्त बातें माघी पुन्नी मेला के दूसरे दिन स्वर कोकिला पद्मश्री ममता चन्द्राकर ने कही। उन्होंने राजिम त्रिवेणी संगम में आयोजित माघी पुन्नी मेला के मीडिया सेन्टर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि बचपन से ही मेरी रूचि गायन पर रही है। मेरे परिवार से मुझे कला उपहार के रूप में मिला है क्योकि परिवार के सभी सदस्य कला से जुड़े हुए थे। शुरूआती दौर में हिन्दी फिल्मों के गीतों पर ज्यादा ध्यान देती थी परन्तु जैसे ही छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति को समझने का मौका मिला। यह अथाह सागर है। इसे जानने के लिए यह जनम भी कम पड़ेगा। सन् 1974 में अरपा पैरी के धार पर प्रस्तुति दी। गोपाल दास वैष्णव ने इसका धुन तैयार किया था नरेन्द्र देव वर्मा ने लिखा है। राजगीत का दर्जा मिलने से मैं बहुत प्रसन्न हूं। एक प्रश्न पर उन्होंने कहा कि जिस समय मैं गीत गाने के लिए मंचो पर जाती रही उस दौर पर महिलाओं या फिर बेटियों की प्रस्तुति पर उन्हें देखने का नजरिया कुछ अलग होता था। स्पष्ट हैं बहुत सारी बंदिशे थी। सन् 1992 में मेरी पहली एलबम आया। श्रीमती चन्द्राकर ने आगे कहा कि अभी के कलाकार बहुत जल्दी में है। जबकि कला साधना है इसके लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है। समय आने पर श्रम का फल जरूर मिलता है। इसलिए कर्म करें फल आपको मिल ही जायेगा। मेरे कार्यक्रम को देखने के लिए लाखों की भीड़ नहीं बल्कि 5 आदमी ही काफी है क्योंकि यही पांच लाखों के बराबर है। चर्चा के दौरान श्रीमती ममता चन्द्राकर कला के क्षेत्र में अपने पुराने दिनों को यादकर रोमांचित हो उठी। वह बताती है कि मैं आज भी प्रतिदिन अभ्यास करती हूूं। क्योंकि आगे बढ़ने का यही श्रेष्ठ जरिया है। उन्होंने बताया कि खाने में छत्तीसगढी़ व्यंजन खूब पसंद है आज भी घरों मे इन्हें बनाती भी हूं और खाती भी हूं। नयी-नयी चीजो की काॅपी करने का शौक मुझे बचपन से है। इस अवसर पर मीडिया सेन्टर पर गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया गया। प्रमुख रूप से संचालक श्रीकांत साहू, युवराज साहू, रोशन साहू, संतोष कुमार सोनकर, प्रकाश वर्मा, योगेश साहू, चेतन चौहान, वीरेन्द्र साहू, खुमान साहू इत्यादि मौजूद थे।