उतई ।ग्राम बोरीडीह में साहू परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में प्रवचनकर्ता मानस मर्मज्ञ स्वामी चंद्रकांत शर्मा ने तीसरे दिवस भरत चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि वह भारत जिनके नाम हमारे भारत देश को भारत नाम मिला है व भरत जी घर द्वार छोड़ कर गण्डकी नदी के तट पर भगवत पूजन अर्चन वंदन करने निकल गए।यह नदी जिनका उदगम नेपाल में हुआ,भरत जी भगवत सत्संग में तत्पर थे।और हुआ यूं कि भरत जी स्नान करने गण्डकी नदी में चले गए,तभी एक मृगी का बच्चा वहा बहते हुए उनके चरणों से स्पर्श हुए भरत वह मृगी को जल से निकालकर उनका लालन पालन करने लगा एवं कुछ दिनों के बाद मृगी उनको छोड़कर चले गया,जिस पर भरत हाय मृगी हाय मृगी करते हुए प्राण त्याग दिए।स्वामी जी कथा को सारगर्भित करते हुए कहा कि अंत मति सो गति और भरत को पुनर्जन्म में मृगिका स्वरूप मिला एवं मृगी शरीर मिलने के बाद उनको पुनर्जन्म याद था और उन्होंने मृगी स्वरूप मिलने के बावजूद उन्होंने एकादशी का व्रत एवं संतो का संग करता एवं सत्संग फलस्वरूप मृगी शरीर त्याग कर पुनः उनको मनुष्य तन प्राप्त हुआ जिनका नाम जड़भरत हुआ। स्वामी शर्मा जी ने बताया कि यह दुनिया जड़ है, और हम सबके प्रभु भरत है।जड़भरत जी के द्वारा रहूगण राजा जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई।
बोरीडीह में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन भरत चरित्र का वर्णन
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