रोशन सिंह@उतई ।नगर के दशहरा मैदान बाजार चौक में कृपालु दरबार समिति द्वारा आयोजित पंद्रह दिवसीय प्रवचन के दसवें दिन वृन्दावन से पधारी विश्व के पंचम मूल जगदगुरू श्री कृपालु जी महाराज की प्रमुख प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी जी ने बताया कि ईश्वर प्राप्ति के केवल तीन उपाय अर्थात् मार्ग है। आप कहेंगे, जब भौतिकवाद में अनेक उन्नतियां हो रही हैं तो ईश्वर-प्राप्ति में अनादिकाल से अब तक तीन ही मार्ग क्यों है ? चौथे मार्ग की खोज आज तक किसी आध्यात्मिक वैज्ञानिक ने क्यों नहीं की ? पर शायद आप यह नहीं जानते कि नेचर के विपरीत विज्ञान नहीं हुआ करता
आँख से अनादिकाल से देखने का ही काम लिया जाता है। वह कार्य विज्ञान द्वारा भी कान नहीं कर सकता। उसी प्रकार इन तीनों का स्वाभाविक विज्ञान है जिसे समझ लेने पर आपका यह भ्रम समाप्त हो जायेगा। वेदों, शास्त्रों, पुराणों आदि समस्त ग्रन्थों में तीन ही मार्गों का प्रतिपादन किया गया है-प्रथम कर्म, द्वितीय ज्ञान एवं तृतीय भक्ति या उपासना बस चौथा कोई मार्ग नहीं। यदि कही पढ़ने, सुनने को मिलेगा तो वह इन्ही तीनों के अन्तर्गत ही होगा।
इसका विज्ञान यह है कि ब्रह्मा की तीन स्वरूप शक्तियाँ हैं- सत्ब्रह्म, चित्ब्रह्म एवं आनन्द ब्रह्म । इनमें सत् ब्रह्म का स्वभाव कर्मवाला है, चित् ब्रह्म का स्वभाव ज्ञान वाला है तथा आनन्द ब्रह्म का स्वभाव प्रेम का है। चौथा कोई स्वभाव ईश्वर का नहीं है और उसी का अनादि सनातन अंश होने के कारण प्रत्येक जीव का भी तीन ही प्रकार का स्वभाव हो सकता है- कर्म, ज्ञान और भक्ति का जब चौथा स्वभाव है ही नहीं तो चौथा मार्ग कैसे बन सकता है ? अब एक-एक मार्ग पर गंभीर विचार करना है।